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The New Arrival

ज़िंदगी की दुल्हन (कविता)

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ज़िंदगी की दुल्हन संग चल रही है मेरी तेज़ घड़ी से तंग चल रही है। संग जीके भी ये कैसी दीवार है! न घूँघट उठा न हुआ दीदार है। जी रहे हैं या बिताये जा रहे हैं?  ज़िंदगी रस्म-सी निभाये जा रहे हैं। घड़ियाँ बदल-बदलके देख रहा हूँ, कोई तो अपना वक़्त बताएगी, निरेख रहा हूँ।  ज़िंदगी हर पल नया अफ़साना है, यह दुल्हन तो रंग-रूप का ख़ज़ाना है। सूखा है बाढ़ है पतझड़ या बहार है  ज़िन्दगी जो भी है, तुझसे प्यार है। -काशी की क़लम 

प्रेमी पथ (कविता)

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मंज़िल, दूर से लगती बड़ी मुश्क़िल है, नज़दीक से पाया, ये तो नरम दिल है। मंज़िल से पहले शंकाएँ मिल जाती हैं, लेने धैर्य-परीक्षा मज़िलें बल खाती हैं। सोचके बाधाओं की, पग न बढ़ा जाता है, लगता है मज़िल-मार्ग टेढ़ा-मेढ़ा जाता है।  मज़िल भावी भविष्य, कोरा सपना है, पथ प्रकाशपुंज ही तो केवल अपना है।  मंज़िल की चाह में हम राहों से बेवफ़ा हुए, प्रेमी तो पथ हैं, न दफ़ा हुए न खफ़ा हुए। मज़िलें छलावा, कोरे काग़ज़, बेमाइने हैं, रास्ते तो रौशनी, कहानी औ’ आईने हैं। -काशी की क़लम

कच्चाई

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वो कच्चे मक़ान कच्ची सड़कें कच्ची गलियाँ कच्चे आँगन कच्चे दालान कच्चे अरमान  कच्चे मेल  कच्चे खेल  अब पक्के होते जा रहे हैं,  लोगों के दिल भी पक्के हो रहे हैं। पक्के, सख़्त पत्थर के जैसे! -काशी की क़लम

तुम फिर याद आए…, इरफ़ान ख़ान

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आजकल प्लानिंग का ज़माना है। मेहमान भी पूछ कर या बता कर आते हैं। वो कौए अब न रहे जो मेहमानों के आने की आहट देते थे। बच्चे पैदा एक निर्धारित समय पे हो रहे हैं। पहले जन्म के समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति भाग्य को प्रभावित करते थे। अब जन्म भी अनुकूल ग्रह-नक्षत्रों के हिसाब से हो रहे हैं। मृत्यु। अब मृत्यु की भी प्लानिंग होने लगी है। प्लानिंग के इस दौर में कैसा लगता है जब कुछ अप्रत्याशित होता है! हमें भी कुछ ऐसा ही लगा था। हाल ही में हम एक दुकान में अपने ऑर्डर की प्रतीक्षा कर रहे थे। दीवार पे चल रही टीवी से कोई जाना-पहचाना चेहरा बार-बार झाँके जा रहा था। मेरी यादाश्त पे दस्तक़ हो रही थी। हॉलीवुड की मूवी थी,पर मेरी पहचान से परे। पता चला ‘लाइफ़ ऑफ़ पाई’ के एक्टर सूरज शर्मा जी हैं। तभी इरफ़ान ख़ान जी भी बड़ी-बड़ी, गहरी आँखों से झाँक रहे थे। उनकी उम्दा अदाकारी,  संवेदनशील शख़्सियत, सब ताज़ा हो गईं। उनका बेवक़्त दुनिया से रुख़्सत होना एक व्यक्तिगत क्षति थी। उनके जाने पे कुछ शब्द छलके थे। उनको साझा कर रहा हूँ। रिपीट है, पर उभर आया है, तो कृपया एक बार और पोंछ दीजिए। सिनेमा का एक तारा जो टूट गया,...

सृजन के विभिन्न चरण और उनसे उतरती हुई गीता की पेंटिंग।

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 इस सुंदर चित्र का सृजन गीता के हाथों हुआ है । सृजन की प्रकिया के कई चरण होते हैं । कभी कोई ख़याल मन को छू जाता है । कभी कोई बात चुभ जाती है । कभी दुनिया को बदलने की ठानी जाती है । कभी भविष्य में झाँकने का मन करता है । कभी एक अपने मन की दुनिया की कल्पना होती है । इस तरह उपजती है एक सोच । यह सृजन का पहला चरण होता है। फिर इसको अमली जामा पहनाना पहनाने पर विचार होता है। विचार के संचार के लिए साधन की ज़रूरत होती है। कला। एक सोच को संसार में संचारित करने के लिए कला ही एक मात्र साधन है। कला के इस पहलू का उपयोग विज्ञान, तकनीकी, इत्यादि ब्रह्माण्ड के सभी क्षेत्रों में होता है। यहाँ कला को संकुचित विचारधारा से देखने पर शायद समझ नहीं आए। कला को टेक्निकल तौर पर देखने के बजाय इसकी सृजन शक्ति को जानना की आवश्यकता है। नए-नए आविष्कार कला के गर्भ से निकलते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने द्वारिका नगरी के सृजन के लिए स्वयं सृजन-देव विश्वकर्मा जी से विनती की थी। सृजन का अगला चरण है संचार के माध्यम का चुनाव। शब्द, चित्र, स्वर, इत्यादि अभिव्यक्ति के संचार के साधन हैं। इन मूलभूत माध्यमों के कई स्वरूप विकसित हो...

ज़ीने (सीढ़ियाँ)

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(ज़ीना-सीढ़ी)  लिफ़्ट के दौर में ज़ीने जो बिसर जाएँगे भुलाकर बहाना पसीना किधर जाएँगे? तरक़्क़ी मुबारक़ हो बुलंदियों की, मगर  चढ़ न सकेंगे दोबारा, जो नज़र से उतर जाएँगे।   ज़ीने  ज़मीर हैं, इन्हें न ठुकराइये ज़नाब ! आपात में आप ज़ीने की ही डगर जाएँगे। औरों की गवाही से साबित क्या होगा जब आप आप से ही मुक़र जाएँगे। दग़ा देगी लिफ़्ट जो, ये ज़ीने याद करना ज़ीने के रास्ते मुक़द्दर आपके घर जाएँगे। -काशी की क़लम

जब-जब राहों में रोड़े मिलें, मन के हाथों हथौड़े मिलें (कविता)

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 ध्यान जहाँ भटका, आदमी वहीं अटका। लक्ष्य पावन साधो, भेदने सर्वस्व लगा दो। जब-जब राहों में रोड़े मिलें, मन के हाथों हथौड़े मिलें। धर्म की राह कड़ी होगी, उसपे जीत बड़ी होगी। -काशी की क़लम

जिसकी भुजाएँ चार त्वचाएँ जालीदार, वो कौन? गाँव बसर।

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पहेली: मेरे पास भुजाएँ चार हैं, मेरी त्वचायें जालीदार हैं। फैलकर चार दीवार बनाती हूँ, उसके ऊपर छत भी छवाती हूँ। सूरज ढलने पे होता मेरा विस्तार है, सूरज उगने पे घटता मेरा आकार है। पलंग, चारपाई, बिछौनों की मेरी सवारी है, आपकी सोने पर आती जागने की मेरी बारी है। अपने आँचल में चैन की नींद सुलाती हूँ, माँ नहीं, पर हवा भी छानकर पिलाती हूँ। बुख़ार छेड़ने वालों के विरुद्ध कवच सिलाती हूँ। जो मेरे जानी दुश्मन, उनकी ‘दानी’ कहलाती हूँ। तो बताइए, मैं कौन हूँ?

दो रास्ते जीवन के ।

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ज़िंदगी एक सफ़र है । इसे तय करने के दो रास्ते हैं । एक है हाईवे का रास्ता। यहाँ पर तेज़ गति है और उसका अपना रोमांच है । मंज़िल ज़ल्दी आती है । रास्ते पर ध्यान रखने की ज़रूरत होती है। चूक का ज़ोख़िम बहुत बड़ा होता है । यह तेज़ घोड़ों की रेस जैसा है, जिसमें सबकी अपनी-अपनी फिनिश लाइनें हैं । बग़ल वाले घोड़े से कोई लेना-देना नहीं, कोई जान-पहचान नहीं। इस रेस में सभी विजेता हैं । एक बार हाईवे में घुसने वाले को बिना रुके, थके लगातार दौड़ना पड़ता है। मंजिल कब आ गई, पता ही नहीं चलता। सुबह-दिन-शाम-रात सिर्फ़ सड़क ही सड़क है । सफ़र की कोई याद नहीं बनती है । हाईवे वाला जीवन आत्मा रहित शरीर की दौड़ जैसा है । जीवन का दूसरा रास्ता गाँव-शहर से गुज़रता है। यहाँ पर अवसरों के सिग्नल जगह-जगह मिलते हैं। इसमें अवसरों के आस्वादन का आनन्द है। अंगड़ाई लेती सुबह है । चलता-फिरता दिन है । जगमगाती शाम के बाद सुकून भरी रात है । यह रास्ता समय को हर पल स्पर्श करता हुआ चलता है। यहाँ स्पीड ब्रेकर भी हैं । हर मील पर जीवन का अलग रंग है, अलग रूप है। जगह-जगह मोड़ हैं, घुमाव हैं । अगल-बग़ल से दुआ-सलाम है । यह जीवन सबके साथ ...

जीवन कैसे जिया जाए? (कविता)

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जीवन कैसे जिया जाये? जलता जैसे दीया जाये। उम्र घट रही है पल-पल, ख़र्च हो रहे हैं मुसलसल*। दीये में बचा जितना तेल है,  उतने भर ही जीवन खेल है। तेल का कितना भण्डार है? नहीं पता, तले अंधकार है। अहम-प्याला नहीं पिया जाए! तेल भर उजाला किया जाए। -काशी की क़लम मुसलसल* : लगातार