सृजन के विभिन्न चरण और उनसे उतरती हुई गीता की पेंटिंग।
इस सुंदर चित्र का सृजन गीता के हाथों हुआ है । सृजन की प्रकिया के कई चरण होते हैं । कभी कोई ख़याल मन को छू जाता है । कभी कोई बात चुभ जाती है । कभी दुनिया को बदलने की ठानी जाती है । कभी भविष्य में झाँकने का मन करता है । कभी एक अपने मन की दुनिया की कल्पना होती है । इस तरह उपजती है एक सोच । यह सृजन का पहला चरण होता है। फिर इसको अमली जामा पहनाना पहनाने पर विचार होता है। विचार के संचार के लिए साधन की ज़रूरत होती है। कला। एक सोच को संसार में संचारित करने के लिए कला ही एक मात्र साधन है। कला के इस पहलू का उपयोग विज्ञान, तकनीकी, इत्यादि ब्रह्माण्ड के सभी क्षेत्रों में होता है। यहाँ कला को संकुचित विचारधारा से देखने पर शायद समझ नहीं आए। कला को टेक्निकल तौर पर देखने के बजाय इसकी सृजन शक्ति को जानना की आवश्यकता है। नए-नए आविष्कार कला के गर्भ से निकलते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने द्वारिका नगरी के सृजन के लिए स्वयं सृजन-देव विश्वकर्मा जी से विनती की थी।
सृजन का अगला चरण है संचार के माध्यम का चुनाव। शब्द, चित्र, स्वर, इत्यादि अभिव्यक्ति के संचार के साधन हैं। इन मूलभूत माध्यमों के कई स्वरूप विकसित हो चुके हैं। इंजीनियरिंग ड्रॉइंग भी एक प्रकार का सीमाबद्ध, व्यवस्थित और उद्देश्यपरक चित्र ही है। मूवी, यानी चलचित्र। परिवर्तनशील भावनाओं के सतत प्रवाह का माध्यम है मूवी। Adobe का Photoshop software कल्पना और वास्तविकता के बीच का पुल है।
सृजन का अगला चरण है संसाधन। भौतिक वस्तुओं, जैसे क़लम-दवात-काग़ज़ के अलावा सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन है समय। अन्य सभी संसाधन जुटाए जाते हैं, समय को निकालना पड़ता है। समय निकालने के लिए इच्छाशक्ति जरूरी है। सृजन के लिए स्वयं से किया गया संकल्प दृढ़ इच्छाशक्ति का स्रोत होता है। अगर इच्छाशक्ति नहीं है, तो बहाने और आलस्य होते हैं।
धर्मपत्नी श्रीमती गीता सिंह जी की चित्रकारी भी इतनी चरणों से गुज़रते हुए कैनवास पर उतरी और दीवार पर टँगी है। इसको मूर्त रूप देने के लिए तमाम व्यस्तताओं को चुनौती दी जाती है। जब-जब बात नहीं बनती है, तो बात बिगड़कर बग़ावत की जाती है । यह बग़ावत पहले ख़ुद से होती है और साथ रहने वाले भी लपटों के लपेटे में आ जाते हैं। तब जाके समय निकलता है और एकाग्रचित्तता मिलती है। तब साकार होता है सृजन। सवाल यह है कि सृजन से हासिल क्या होता है? ज़वाब यह है कि सृजन में ब्रह्म की अनुभूति होती है । इस अनुभूति को अनुभव किया जा सकता है, शब्द, स्वर की अभिव्यक्ति से परे है यह । पेंटिंग के लिए की गई बग़ावत का फल सुंदर है। मुझे भी संतोष है कि परिवार भी सकुशल है । इस सुंदर कृति के लिए गीता को ढेरों बधाइयाँ ।
हाथ मरुधर को भी जीवन्त कर देता है
साथ पतझड़ में भी बसन्त भर देता है ।
-काशी की क़लम
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