जिसकी भुजाएँ चार त्वचाएँ जालीदार, वो कौन? गाँव बसर।
पहेली:
मेरे पास भुजाएँ चार हैं, मेरी त्वचायें जालीदार हैं। फैलकर चार दीवार बनाती हूँ, उसके ऊपर छत भी छवाती हूँ। सूरज ढलने पे होता मेरा विस्तार है, सूरज उगने पे घटता मेरा आकार है। पलंग, चारपाई, बिछौनों की मेरी सवारी है, आपकी सोने पर आती जागने की मेरी बारी है। अपने आँचल में चैन की नींद सुलाती हूँ, माँ नहीं, पर हवा भी छानकर पिलाती हूँ। बुख़ार छेड़ने वालों के विरुद्ध कवच सिलाती हूँ। जो मेरे जानी दुश्मन, उनकी ‘दानी’ कहलाती हूँ। तो बताइए, मैं कौन हूँ?
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