दो रास्ते जीवन के ।

ज़िंदगी एक सफ़र है । इसे तय करने के दो रास्ते हैं । एक है हाईवे का रास्ता। यहाँ पर तेज़ गति है और उसका अपना रोमांच है । मंज़िल ज़ल्दी आती है । रास्ते पर ध्यान रखने की ज़रूरत होती है। चूक का ज़ोख़िम बहुत बड़ा होता है । यह तेज़ घोड़ों की रेस जैसा है, जिसमें सबकी अपनी-अपनी फिनिश लाइनें हैं । बग़ल वाले घोड़े से कोई लेना-देना नहीं, कोई जान-पहचान नहीं। इस रेस में सभी विजेता हैं । एक बार हाईवे में घुसने वाले को बिना रुके, थके लगातार दौड़ना पड़ता है। मंजिल कब आ गई, पता ही नहीं चलता। सुबह-दिन-शाम-रात सिर्फ़ सड़क ही सड़क है । सफ़र की कोई याद नहीं बनती है । हाईवे वाला जीवन आत्मा रहित शरीर की दौड़ जैसा है ।



जीवन का दूसरा रास्ता गाँव-शहर से गुज़रता है। यहाँ पर अवसरों के सिग्नल जगह-जगह मिलते हैं। इसमें अवसरों के आस्वादन का आनन्द है। अंगड़ाई लेती सुबह है । चलता-फिरता दिन है । जगमगाती शाम के बाद सुकून भरी रात है । यह रास्ता समय को हर पल स्पर्श करता हुआ चलता है। यहाँ स्पीड ब्रेकर भी हैं । हर मील पर जीवन का अलग रंग है, अलग रूप है। जगह-जगह मोड़ हैं, घुमाव हैं । अगल-बग़ल से दुआ-सलाम है । यह जीवन सबके साथ चलता है। कभी-कभी ख़िलाफ़त भी है। इस रास्ते में चारों ओर जीवन दीखता है। इस जीवन को जीने का भरपूर समय है। मंज़िल पर यादों का ख़ज़ाना है । इस रास्ते का जीवन जीवंत, सार्थक और संतुष्ट है ।

दोनों रास्तों के अपने फ़ायदे-नुक़सान हैं । चुनाव तो करना ही है । अक्सर कोई हाईवे सिर्फ़ इसलिए लेता है, ताकि उसके अपने लोग गाँव-शहर की धीमी सड़क से मंज़िल पर पहुँच सकें ।

-काशी की क़लम

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