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कहानी 'प्रतियोगिता": बुद्धि और व्यक्तित्व के परीक्षण में कौन अव्वल आएगा )

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  एक शहर में ११-१२वीं के बच्चों को परखने की प्रतियोगिता हुई। जगह-जगह बैनर लग गए। प्रतियोगिता के नियम बहुत स्पष्ट नहीं थे, जैसे-सवाल किस विषय में होगा, मौखिक या लिखित, शारीरिक दौड़ लगानी होगी, या कोई पहेली सुलझानी पड़ेगी। ‘प्रतियोगिता’ शब्द सुनते ही बहुत सारे माता-पिताओं और अभिभावकों के कान खड़े हो गए। उनके मन में लड्डू फूटने लगे। किसी भी क़ीमत पर उनके बच्चे को ही अव्वल जो आना था। सारे घरों में बच्चों की तैयारियाँ शुरु हो गईं। अब जब प्रतियोगिता का दायरा व्यापक हो, तो पढ़ाई भी ख़ूब करनी पड़ेगी। घर में बच्चों के दूध में पौष्टिक पाउडर का अनुपात अपने चरम पर चढ़ गया। बच्चों की नींद हराम हो गई। उनको उस लकीर पर सावधानी से चलना पड़ा, जिसको हम समय-सारिणी कहते हैं। खेलना-कूदना तो दूर उनका अपने मन से हिलना भी दूभर हो चला। लेकिन बच्चों को मोबाइल में गेम खेलने के लिए पहले से अधिक छूट थी। बच्चों को माता-पिता की इस उदारता का कारण समझ नहीं आया। दोस्तों से मिलना ईद का चाँद हो गया। लेकिन यह सब पहली बार नहीं हो रहा था। पहले की भी प्रतियोगिताओं के लिए उन पर ये मेहरबानियाँ हुआ करती थीं। प्रतियोगिता का दिन ज

प्यासा ऊँट

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    रेगिस्तान में एक प्यासा ऊँट पानी की खोज में चलता  जा रहा था। उसका संचय किया हुआ सब कुछ सूख रहा था।  पानी भी, हिम्मत भी।  उसको एक नागफ़नी का पौधा मिला। पौधा बड़ा ही उदार हृदय था। उसने ऊँट से बोला,  "बड़े प्यासे लग रहे हो, मेरे अंदर पानी-ही-पानी है। उसे चूस लो। " ऊँट बोला, "काँटे हैं, साफ़-साफ़ दीख रहा है। मेरा मुँह छिल जाएगा।  वैसे मदद के भाव के लिए धन्यवाद। " ऊँट आगे बढ़ता है। उसको एक कोबरा मिला। कोबरे ने समस्या सुनी। उसने बोला,   "ऊँट महाराज! मेरे पास तो पानी जैसा कुछ है, कहिए तो उसकी एकाध बूँद दे दूँ?" ऊँट, "हे विषधर! ऊँट के मुँह में जीरा तो सुना था, ऊँट के पेट में बूँद! ना बाबा ना! मैं नये मुहावरे का नायक नहीं बनना चाहता। वो भी मूर्ख नायक तोएकदम नहीं।" ऊँट आगे बढ़ा। उसका गला प्यास के मारे सूखा जा रहा था। आँखों के सामने ही नहीं, बल्कि सचमुच में अँधेरा छा गया। वो आराम के लिए एक जगह बैठ गया। उसका मन इसी उधेड़-बुन में लगा था कि वह सुबह तक कैसे जीवित रहेगा। तभी उसको एक उल्लू मिला। उल्लू ने उसकी समस्या सुनी। उल्लू बोला,  "दूर में एक जगह है, वहाँ पा

काव्यांत्रिकी (Kavyantriki)-5: HBTI कानपुर के कवि सम्मेलन 'काव्यान्त्रिक...

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प्रकाश हैं, तो करें! (Hindi Poem Celebrating Light)

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प्रकाश हैं, तो करें! (Hindi Poem Celebrating Light)

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  नीचे   होगा   आसमाँ ,  तूँ   सूरज   की   चाह   रख। लगेंगे   पंख   आसमानी ,  तूँ   उड़ानों   की   राह   रख। विश्राम   नहीं ,  तेरा   तो   जीवन   संघर्ष अविराम   है। जो   आँसू   पोंछ   दे   औरों   के ,  तूँ   ही   वह   राम   है। पल   भर   जलना ,  बुझ   जाना ,  यह   तो   जुगनू   का   काम   है। जो   अखण्ड   जलता   है   परहित   में ,  उसी   दीप   का   सूरज   नाम   है। अस्त   नहीं   होता   सूरज   कभी ,  फिर   तूँ   क्यों   सो   जाता   है ? देख   पूर्णिमा   चाँद   रश्मियों   को ,  क्यों   भ्रम   से   मोह   जाता   है ? जो डूब   गया   वो   पश्चिम   में   था ,  तूँ   जाग   गहन   अमावसी   राहों   में। बस तूँ चल अथक, उत्तर   होगा   पूरब   में   औ   सुबह   सहलाएगी बाहों   में। डगमग   हो   रही   नाव   भँवर   में ,  धुंध   में   नहीं   सूझता   किनारा। उमंग   भरना   उस   माँझी   मन   में ,  अगर   पतवार का न हो   सहारा।   अपना   दीप - अपना   कोना ,  निरा   चिंह   है   पशुता   का   होना। परहित - तेल   पर   दिया   औ   बाती ,  है   अंश   मनुजता   का   होना।   पड़ोस   की   अँधियारी   छाया ,  यदि   झाँकती

समय आज गुरु ‘विजय’ बोल

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जो सबको उसका पता बता दें। गणित की हर दफ़ा बता दें। जो मौज़ों की खान हैं। पढ़ाना जिनकी जान है। कलम आज उनकी जय बोल। समय आज गुरु ‘विजय’ बोल। कसौटी है इनकी कड़क इतनी। हीरा भी न हो कठोर जितनी। जो कोई चेला खरा उतर जाएगा। कोयला हो, हीरा सदर हो जाएगा। किताबों की ही गणित नहीं समझाते हैं। कक्षा पार जीवन की भी गणित बुझाते हैं। भले ही लिमिट इन्फ़िनिटी को टेंड कराते हैं। पर स्वयं को ग्राउंड ज़ीरो पर ही लहराते हैं। समझ आए, न आए, मुँह न खोलो। तुम ‘विजय’ राडार की पहुँच न तोलो। चेहरे पढ़कर समझ का आँकड़ा लगाते हैं। एक्स-रे आँखों से सबको शीशे-सा बनाते हैं। मिलावटी गहने चमकीले भर बस दिखते हैं। ‘सिंह’ सोनार की अग्नि-परीक्षा में नहीं टिकते हैं। फूँक-फूँककर परत-दर-परत गलाते हैं। सबको उसका असली मूल्य बतलाते हैं। नहीं है जिनका कोई मोल, कालजयी, हैं विजयी-अनमोल। कलम आज उनकी जय बोल। समय आज गुरु ‘विजय’ बोल।

पोस्ट कार्ड

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काँटे   जो   पार   कर  सकता   है ,  ग़ुलाब   उसे   ही   स्वीकार   कर   सकता   है। मन भरता पर पेट नहीं, खाली मन की बातों से। जयकार निकल नहीं सकती, दम तोड़ती आँतों से। The accommodating man finds a path of roses; non-accommodating, one of thorns. But the worshippers of ‘Vox populi’ go to annihilation in a moment; the children of the truth live forever. -Swami Vivekanand Before opening mouth,  Think twice. Some voice, Or Just Noise? कलम   झुककर   ही   कुछ   लिख   पाती   है , तो   हम   तनकर   कितना   दूर   चल   सकते   हैं ?   ऐ   मेरे   चाँद ! तेरा   उस   चाँद   का   पहला   दर्शन ,  मुझे   हर   साल   खल-सा   जाता   है। जो   सूरज   चमकाता   चाँद   को ,  तेरे   ख़ातिर ,  मौन   व्रत   कर   जाता   है।

कहानियों का मानसूनी सफ़र

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सादर प्रणाम,     कल एक सप्ताह चलने वाली प्रतिलिपि की मानसून फ़ेस्टिवल प्रतियोगिता की पूर्णाहुति हो गई। मैंने भी पुरज़ोर प्रयास किया, कुछ कहने का। सरस्वती माँ की कृपा से मैं अपने प्रयासों में सफल रहा। इस सफलता का मापदंड प्रतियोगिता में स्थान पाना नहीं है। यह प्रतियोगिता तो मेरे लिए एक बहाना है, एक लालच है। कहानियों को बटोरने का लालच। समय के बंधन में कुछ अनकहा-सा कह जाने का लालच। सामान्य तौर पर किसी विषय का विचार आने और कहानी लिखी जाने तक कम-से-कम २ सप्ताह तो लगते ही हैं। इसलिए अपने आपको समय की चुनौती देने का यह फ़ेस्टिवल एक अच्छा अच्छा अवसर देता है। पिछली बार वाले हॉरर फ़ेस्टिवल में आत्मबोध हुआ कि कहानियाँ केवल पेड़ के नीचे बैठकर ही नहीं, बल्कि बच्चों के शोर-शराबों के बीच भी लिखी जा सकती हैं; कुछ कहने के लिए संकल्प कृत होना सबसे  ज़रूरी है।    पहली वाली पिक्चर को जब मैंने देखा, ‘बरसात की एक रात’, अगले दिन १२ बजने में मात्र १.५ घंटे का समय बाक़ी था। बारिश से मेरे दिमाग़ में पकौड़ी आई, लेकिन रामदीन की ‘चाय-पकौड़ी की आस’ अधूरी रह गई। ट्रैजेडी लिख कर मन को दुःख भी हुआ, लेकिन मेरा कहने

असीम आभार हिंदी अकादमी, मुंबई

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आदरणीय डॉ. प्रमोद सर एवं समस्त हिंदी अकादमी, मुंबई (साहित्यिक एवं काव्य समूह) परिवार, सादर प्रणाम यह ट्रोफ़ी भेजने के लिए आपका हृदय से आभार। इस मंच पर आकर काफ़ी कुछ सीखने को मिल रहा है। यहाँ पर नम्र भरतभाई वायडा जैसे किशोर हैं, जो कि भारत के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते है। उनके विचारों से रूबरू होकर लगा कि देश की बाग़डोर सही हाथों में जाने वाली है। इस मंच पर श्रीमती तरूणा पुण्डीर जी जैसी व्यक्तित्व हैं, जो सबको आजीवन नई-नई चीज़ें सीखने की प्रेरणा देती हैं। “ अगर मुझे सिफ़ारिश की ज़रूरत होती, तो मैं इस उम्र में प्रतियोगिता में नहीं आती।” उनका काव्य पाठ प्रतियोगिता में कहा गया यह कथन मेरे ज़ेहन में सजीव रहेगा। श्रीमती आभा सूचक जी ने सहजता, विनम्रता की जीती-जागती मूर्ति हैं। ऊँचाई पर भी शालीन बने रहना कोई उनसे सीखे। यह संस्थान अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करे, मेरी प्रभु से प्रार्थना रहेगी। -आपका शिष्य नवीन असीम आभार  हिंदी अकादमी, मुंबई (साहित्यिक एवं काव्य समूह)

मन्नत

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श्रद्धालुओं से मंदिर खचाखच भरा था। भगवान के आसन तक पहुँचने के लिए मीलों लम्बी क़तार थी। भगवान को भी सबकी फ़रियाद सुनते-सुनते थकान-सी हो चली थी। वे अपने विश्राम के समय के इंतज़ार में थे। वे घड़ी पर टकटकी लगाए थे कि कब दोपहर के १ बजे, और मंदिर १ घंटे के लिए बंद हो। १ बजा, और मंदिर का मुख्य द्वार बंद हो गया। तीन श्रद्धालु मंदिर के अंदर ही रह गए। भगवान जी आँख मूँदकर विश्राम की तैयारी में उन तीनों को बारी-बारी से सुनते हैं। एक ने भगवान से बोला, “ हे प्रभु! मुझे नौकरी दिला दो।” भगवान ने सोचा चलो अब २ और बचे हैं। दो की सुन लूँगा तो मेरा १ बज जाएगा। दूसरा आदमी, वहीं दंडवत होकर, “भगवान! मेरी शादी करा दो, अगले साल ४० का हो जाऊँगा। जोड़े में आकर माथा टेकूँगा।  भगवान ने राहत की साँस ली, चलो बस आख़िरी।  वकील साहब अपनी काली कोट में थे, नतमस्तक होकर बोले, “ भगवान, मुझे सही-सलामत रखना।” ऊँघाई ले रहे भगवान को झटका-सा लगा। उन्होंने सोचा कि पेशे से वकील है, मुझे फँसा सकता है। उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और वकील से बोले, “ तुमको किसी से ख़तरा है? ” वकील साहब भौंचक्के रह गए। उनको लगा कि उनके कान बज रहे हैं। भ

अंतिम ख़त: सैमसंग (Samsung) के भूतपूर्व चेयरमैन स्व. ई कॉन-ही (Lee Kun-Hee)

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  स्व. ई कॉन-ही (Lee Kun-Hee)  (고 이건희) (09 जनवरी 1942~25 अक्तूबर 2020; 78 वर्ष) चेयरमैन, SAMSUNG GROUP  दक्षिण कोरिया के सर्वाधिक धनी/ विश्व के ७५वें धनी ( फ़ोर्ब २०२०) कुल सम्पत्ति $17.3 बिलियन स्वर्गीय ई कॉन-ही, सैमसंग समूह के भूतपूर्व चेयरमैन थे। वे सैमसंग समूह के संस्थापक के सबसे छोटे पुत्र थे। वे अपनी विचारशीलता और व्यापक परिप्रेक्ष्यों के लिए जाने जाते थे। एक समय था, जब विश्व में मेड इन जापान उत्पादों का बोलबाला था। सोनी, पैनासॉनिक सबकी पसंदीदा घरेलू इलेक्ट्रॉनिक ब्रैडें हुआ करती थीं। स्व. ई कॉन-ही जी ने न ही सैमसंग को विश्व में नम्बर एक बनाया, बल्कि पूरी दक्षिण कोरिया के उद्योगों को विश्व पटल पर स्थान पाने लायक़ बनाया। यह उनके प्रयासों का ही प्रतिफल है कि दक्षिण कोरियाई जनता की आय और जीवन यापन में भारी सुधार हुआ। उनकी तकनीक के लिए दीवानेपन ने कोरिया को विश्व की सर्वाधिक इन्नोवेटिव देशों में अव्वल दर्ज़ा दिलवाया। जीवन के अंतिम ६ वर्ष ५ महीने रोग से जूझते हुए व्यवसाय जगत के इस भीष्मपितामह ने २५ अक्तूबर २०२० को संसार को अलविदा कह दिया। जाते-जाते उन्होंने एक ख़त लिखा, जिसमें की गई ब