कहानी 'प्रतियोगिता": बुद्धि और व्यक्तित्व के परीक्षण में कौन अव्वल आएगा )

एक शहर में ११-१२वीं के बच्चों को परखने की प्रतियोगिता हुई। जगह-जगह बैनर लग गए। प्रतियोगिता के नियम बहुत स्पष्ट नहीं थे, जैसे-सवाल किस विषय में होगा, मौखिक या लिखित, शारीरिक दौड़ लगानी होगी, या कोई पहेली सुलझानी पड़ेगी। ‘प्रतियोगिता’ शब्द सुनते ही बहुत सारे माता-पिताओं और अभिभावकों के कान खड़े हो गए। उनके मन में लड्डू फूटने लगे। किसी भी क़ीमत पर उनके बच्चे को ही अव्वल जो आना था। सारे घरों में बच्चों की तैयारियाँ शुरु हो गईं। अब जब प्रतियोगिता का दायरा व्यापक हो, तो पढ़ाई भी ख़ूब करनी पड़ेगी। घर में बच्चों के दूध में पौष्टिक पाउडर का अनुपात अपने चरम पर चढ़ गया। बच्चों की नींद हराम हो गई। उनको उस लकीर पर सावधानी से चलना पड़ा, जिसको हम समय-सारिणी कहते हैं। खेलना-कूदना तो दूर उनका अपने मन से हिलना भी दूभर हो चला। लेकिन बच्चों को मोबाइल में गेम खेलने के लिए पहले से अधिक छूट थी। बच्चों को माता-पिता की इस उदारता का कारण समझ नहीं आया। दोस्तों से मिलना ईद का चाँद हो गया। लेकिन यह सब पहली बार नहीं हो रहा था। पहले की भी प्रतियोगिताओं के लिए उन पर ये मेहरबानियाँ हुआ करती थीं। प्रतियोगिता का द...