प्रकाश हैं, तो करें! (Hindi Poem Celebrating Light)

 

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नीचे होगा आसमाँतूँ सूरज की चाह रख।

लगेंगे पंख आसमानीतूँ उड़ानों की राह रख।


विश्राम नहींतेरा तो जीवन संघर्ष अविराम है।

जो आँसू पोंछ दे औरों केतूँ ही वह राम है।


पल भर जलनाबुझ जानायह तो जुगनू का काम है।

जो अखण्ड जलता है परहित मेंउसी दीप का सूरज नाम है।


अस्त नहीं होता सूरज कभीफिर तूँ क्यों सो जाता है?

देख पूर्णिमा चाँद रश्मियों कोक्यों भ्रम से मोह जाता है?


जो डूब गया वो पश्चिम में थातूँ जाग गहन अमावसी राहों में।

बस तूँ चल अथक, उत्तर होगा पूरब में  सुबह सहलाएगी बाहों में।


डगमग हो रही नाव भँवर मेंधुंध में नहीं सूझता किनारा।

उमंग भरना उस माँझी मन मेंअगर पतवार का न हो सहारा। 


अपना दीप-अपना कोनानिरा चिंह है पशुता का होना।

परहित-तेल पर दिया  बातीहै अंश मनुजता का होना। 


पड़ोस की अँधियारी छायायदि झाँकती लाचार झरोखों से।

जगमग को और जगा दोबलि देकर कर्ण मशालों से।



जलते दीप ही प्रकाश देतेबुझे हुओं की बिसात कहाँ।

सजीव फूल ही सुगंध देतेमुरझायों के वश की बात कहाँ।


राम के वापस आने परअयोध्या के चेहरे दीप-से जले हैं।

भरत-भाई भी खिल उठे हैंभाई का आना भाई को  खले है।


जब राम वनवास से आते हैंखड़ाऊँ सिंहासन पर पाते हैं।

दशरथ मुक्ति पा जाते हैंभरत रिश्तों की मशाल जला जाते हैं।



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