प्यासा ऊँट
रेगिस्तान में एक प्यासा ऊँट पानी की खोज में चलता जा रहा था। उसका संचय किया हुआ सब कुछ सूख रहा था। पानी भी, हिम्मत भी। उसको एक नागफ़नी का पौधा मिला। पौधा बड़ा ही उदार हृदय था। उसने ऊँट से बोला,
"बड़े प्यासे लग रहे हो, मेरे अंदर पानी-ही-पानी है। उसे चूस लो। "
ऊँट बोला, "काँटे हैं, साफ़-साफ़ दीख रहा है। मेरा मुँह छिल जाएगा। वैसे मदद के भाव के लिए धन्यवाद। "
ऊँट आगे बढ़ता है। उसको एक कोबरा मिला। कोबरे ने समस्या सुनी। उसने बोला,
"ऊँट महाराज! मेरे पास तो पानी जैसा कुछ है, कहिए तो उसकी एकाध बूँद दे दूँ?"
ऊँट, "हे विषधर! ऊँट के मुँह में जीरा तो सुना था, ऊँट के पेट में बूँद! ना बाबा ना! मैं नये मुहावरे का नायक नहीं बनना चाहता। वो भी मूर्ख नायक तोएकदम नहीं।"
ऊँट आगे बढ़ा। उसका गला प्यास के मारे सूखा जा रहा था। आँखों के सामने ही नहीं, बल्कि सचमुच में अँधेरा छा गया। वो आराम के लिए एक जगह बैठ गया। उसका मन इसी उधेड़-बुन में लगा था कि वह सुबह तक कैसे जीवित रहेगा। तभी उसको एक उल्लू मिला। उल्लू ने उसकी समस्या सुनी। उल्लू बोला,
"दूर में एक जगह है, वहाँ पानी मिल सकता है।”
ऊँट, “ लेकिन मैं तो अब चलने के क़ाबिल नहीं हूँ, और अंधेरे में तो मुझे दिखाई भी नहीं देगा।”
उल्लू ने अपनी रात में देख सकने की क्षमता का हवाला देते हुए ऊँट को राह दिखाने का प्रस्ताव रखा।
मरता क्या न करता। ऊँट के पास कोई और चारा न था। उल्लू को टॉर्च बनाकर वह उसके पीछे-पीछे चलने लगा। उल्लू को तो उड़ना था, लेकिन ऊँट को चलना था। ख़ैर, ऊँट को याद आया कि वह तो रेगिस्तान का जहाज है। उसने बल भर ज़ोर लगाया। रात घनी थी। दौड़ते-दौड़ते कट गई। उल्लू को सुबह होते ही नींद आने लगी। वो आलस्य के मारे और उड़ना नहीं चाहता था। वो ऊँट से क्षमा माँगने लगा,
“ माफ़ करना, अब मेरे आराम का समय हो गया है।"
ऊँट की जान पे आ गई। दौड़ने में उसने अपना बचा-खुचा पानी भी प्रयोग कर लिया। ऊँट के लाख मनाने पर उल्लू ने अपनी नींद पर क़ाबू पाया। उल्लू उड़ा, लेकिन बेमन से। अब वह ऊँट से पीछा छुड़ाना चाहता था। उल्लू को दूर से एक पौधा दिखा। उसने राहत की साँस ली। ऊँट से बोला,
"बस थोड़ी दूर और हिम्मत रखो, मुझे पानी दीख गया।"
ऊँट को जैसे नया जीवन मिल गया हो, वह पानी की उम्मीद में पहले की तुलना में अधिक तेज़ दौड़ा। उल्लू नीचे उतरा। ऊँट को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने बोला,
"उल्लू महाशय! पर यहाँ तो पानी नहीं है।"
उल्लू ने बग़ल के नागफनी के पौधे की ओर संकेत करते हुए बोला,
"ज़रा ध्यान से देखो, नागफ़नी में बहुत सारा पानी होता है। ज़ल्दी से चूस लो। "
ऊँट झल्ला-सा गया। बोला, "ये तो मुझे पहले भी मिला था। इसमें पानी तो है, लेकिन काँटों की वज़ह से मैं चूस नहीं सकता।"
उल्लू, "अरे हाँ! मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन अगर मुझे प्यास लगती, तो मैं तो इसको फाड़ के पानी पी लेता। "
ऊँट, " मैं उल्लू नहीं, ऊँट हूँ। तुमने तो मेरा मज़ाक बना दिया।"
ऊँट उदास होकर वहीं लेट गया। उसने भगवान से प्रार्थना की, "प्रभु! मेरी जान बचा लो।"
सुबह-सुबह शिकार पर निकले हुए एक शेर को दूर से ही ऊँट उलट-पलट करते हुए दीख पड़ा। शेर को लगा कि आज तो थाली सजी रखी है। वह दौड़कर ऊँट के पास पहुँचा। जब उसने ऊँट की आँखों में झाँका, तो एक लाचारी झलकती मिली। शेर तो अपने शिकार को बेचारा बनाकर खाता है, अधमरे को खाना उसके ईमान में न था। उसे लाचार ऊँट पर दया आ गई। ऊँट ने अपना पूरा दुखड़ा सुनाया। शेर ऊँट को पानी की उस जगह पर ले गया, जहाँ पर ऊँट अपनी टंकी भर सकता था। पानी पीने के बाद ऊँट की जान में जान आई। शेर ने बोला,
"क्या तुम्हें पता है-साँप, नागफनी, उल्लू तुम्हें पानी का सही पता क्यों नहीं बता पाए ?"
ऊँट, " वो सब मेरी टंकी का मज़ाक उड़ा रहे थे।"
शेर, "नहीं-नहीं! उन सब ने अपने हिसाब से तुम्हे पानी का सही पता बताया। लेकिन जिस पानी से उनका काम चल जाता है, वो तुम्हारे लिए या तो कम था, या अनुचित। तुम्हीं नहीं, सबकी ज़रूरते अलग हैं। इसीलिए दूसरे के उपाय सुनो, लेकिन उसको तभी गुनो जब वह तुम्हारी समस्या का सटीक व उचित समाधान करे।
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