पोस्ट कार्ड

काँटे जो पार कर सकता है

ग़ुलाब उसे ही स्वीकार कर सकता है।

काँटे जो पार कर सकता है,    ग़ुलाब उसे ही स्वीकार कर सकता है।







मन भरता पर पेट नहीं, खाली मन की बातों से।

जयकार निकल नहीं सकती, दम तोड़ती आँतों से।




The accommodating man finds a path of roses; non-accommodating, one of thorns. But the worshippers of ‘Vox populi’ go to annihilation in a moment; the children of the truth live forever.

-Swami Vivekanand





Before opening mouth, 

Think twice.

Some voice,

Or

Just Noise?

Made-in-Kashi




कलम झुककर ही कुछ लिख पाती है,

तो हम तनकर कितना दूर चल सकते हैं?


कलम झुककर ही कुछ लिख पाती है, तो हम तनकर कितना दूर चल सकते हैं?


  मेरे चाँद!

तेरा उस चाँद का पहला दर्शनमुझे हर साल खल-सा जाता है।

जो सूरज चमकाता चाँद कोतेरे ख़ातिरमौन व्रत कर जाता है।

Made-in-Kashi

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