समय आज गुरु ‘विजय’ बोल



जो सबको उसका पता बता दें।
गणित की हर दफ़ा बता दें।
जो मौज़ों की खान हैं।
पढ़ाना जिनकी जान है।
कलम आज उनकी जय बोल।
समय आज गुरु ‘विजय’ बोल।
कसौटी है इनकी कड़क इतनी।
हीरा भी न हो कठोर जितनी।
जो कोई चेला खरा उतर जाएगा।
कोयला हो, हीरा सदर हो जाएगा।
किताबों की ही गणित नहीं समझाते हैं।
कक्षा पार जीवन की भी गणित बुझाते हैं।
भले ही लिमिट इन्फ़िनिटी को टेंड कराते हैं।
पर स्वयं को ग्राउंड ज़ीरो पर ही लहराते हैं।
समझ आए, न आए, मुँह न खोलो।
तुम ‘विजय’ राडार की पहुँच न तोलो।
चेहरे पढ़कर समझ का आँकड़ा लगाते हैं।
एक्स-रे आँखों से सबको शीशे-सा बनाते हैं।
मिलावटी गहने चमकीले भर बस दिखते हैं।
‘सिंह’ सोनार की अग्नि-परीक्षा में नहीं टिकते हैं।
फूँक-फूँककर परत-दर-परत गलाते हैं।
सबको उसका असली मूल्य बतलाते हैं।
नहीं है जिनका कोई मोल,
कालजयी, हैं विजयी-अनमोल।
कलम आज उनकी जय बोल।
समय आज गुरु ‘विजय’ बोल।

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