आलू बन गया डोनट (DONUT) ! कैसे ?
पृथ्वी। इसमें सागर हैं और हैं कुछ ज़मीन के टुकड़े। इस ज़मीन में बसी तमाम ज़िन्दगियों में से एक है आदमी की। ये वाली ज़िन्दगी ज़मीन की तरह है, जिसका लेखा-जोखा समंदर है। ज़मीन में जितना चढ़ाव है, उतना ही उतार। पहाड़ की चढ़ाई और उतराई दोनों में ही मेहनत लगती है। चढ़ने की तुलना में उतरने में ख़तरा अधिक होता है। उतरते समय वो चढ़ने का उत्साह भी नहीं रहता। सावधानी न बरतने पे उतरना लुढ़कना बन जाता है। चढ़ाई-उतराई के दो पाटों में क़ैद जो पल हैं, वो गवाह हैं हमारी आदमियत-आदिमानवत-जानवरत्व के। धरती, जिसने एक ओर ऊबड़-खाबड़ ज़मीन फैला रखा है, उसी धरती के गर्भ ने विशाल सागरों को भी समा रखा है। इन सागरों में ज्वार-भाटा के कुछ पल हैं, फिर भी ये अनवरत समतल हैं। इन सागर रूपी गुरुओं को शायद धरती ने ज़मीन को राह दिखाने के लिए रखा है । ज़मीन के जोड़-घटाने का परिणाम सागर है। सागर शून्य में विलीन है, एकरस है। इसीलिए सभी इमारतों, पर्वतों इत्यादि की ऊँचाई का आधार...