नब्ज़ मेरी मिल पाती नहीं, जो ये छुअन वक़्त पे आती नहीं।



सादर प्रणाम,

‘सिर्फ़ तुम’ ! शायद आपने यह मूवी देखी हो। उसका स्वेटर आपको याद होगा। हाथ के बुने स्वेटर के ख़ात्मे के साथ रिश्तों का परिवार भी ख़त्म हो गया।  इस  रेडीमेड की चाह ने जितना रिश्तों को ठण्डा किया है, उतना शायद उत्तरी ध्रुव न कर पाया हो। क्रेज़ इतना बढ़ा कि हाथ के स्वेटर, टोपी, दस्ताने बुनने वाली दास्तान ग़ायब हो गई।

आज ख़ुश तो बहुत हूँ…मेरे पास हाथ का बुना हुआ स्वेटर है… मुद्दतों बाद मुझे एक ऐसा नसीब हुआ। यह स्वेटर काशी से मेरी गुरु-माता जी ने भेजा है। मेरी ख़ुशी सातवें आसमान पे है। जब पारा -२० डिग्री सेल्सीयस हो, तो स्वेटर से कहीं अधिक प्रेम गर्मी करता है, और प्रेम में वह गर्मी है, जो किसी सर्दी को अपना बना ले। 

आपको भी हाथ का बुना मिले और  ऐसा बुनने वाला मिले। ऐसी दुआ के साथ कुछ शब्दों की गर्माहट..


मौसम की थकी ज़िंदगानी में

सफ़ेद चूनर ओढ़ी वीरानी में।

पारा जब थर-थर करता है,

थककर शून्य को वरता है। 


जब हवा देती बर्फ़ के थपेड़े है,

पल-पल हाथ कान को हेरे है।

सर्दी से अधिक सर्दी का शब्द सताता है,

शरीर बिना कमानी का बनता छाता है।


दवा से पहले दुआ है,

दुआ से ही सब हुआ है।

चाहत की ऐसी वफ़ा है,

इनकी इनायत शफ़ा है।


हर तार प्यार का वास है,

हर गाँठ में बंधन ख़ास है।

इंची-टेप की क्या दरकार है,

सब भाँपती ये आदि सरकार है।


हृदय ने हड़बड़ाहट की है,

ममता ने अकुलाहट की है।

ज़ल्दी पूरे हो जाओ,

धरती ने करवट ली है।


मृत्युंजयी हाथों से अक्षय कवच ढाला है,

सर्दी की नज़रों के लिए टीका काला है।

नब्ज़ मेरी मिल पाती नहीं,

जो ये छुअन वक़्त पे आती नहीं।

-काशी की क़लम



टिप्पणियाँ

  1. Very nice
    Go ahead
    Itna ooncha utho ki jitna utha Gagan hai
    God bless you and your family

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