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नाम- नामसान टावर। LOCK-N-LOVE I SEOUL NAMSAN TOWER ; तालों से प्रेम को शाश्वत बनाने की क़सम खाने की अनूठी प्रथा

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सादर प्रणाम,  एक भारतीय को विदेशों में जैसे ताजमहल देखा हुआ मान लिया जाता है, वैसे ही कोरिया में एक नाम है - नामसान टावर । यदि कभी प्यार हुआ है, तो आपका मौलिक धर्म  बनता है यहाँ जाना। यह  प्रेम का मंदिर है। इश्क़ का मक्का-मदीना है । दक्षिण कोरिया की राजधानी सोउल (बुरा न मानियेगा, पर कोरियन 서울 SEOUL का हिंदी या  ENGLISH में सटीक उच्चारण मुश्क़िल है) के दाहिने फेफड़े के केंद्र में स्थित है एक TV टावर । नाम-नामसान टावर 남산 타워 NAMSAN TOWER । कोरिया पहाड़ों का देश है । पठार यहाँ के पूर्वज भी हैं, और वंशज भी । लगभग ७२ % भू-भाग  पर इनका कब्ज़ा है । कोरियाई लोगों ने इनके साथ हाथापाई के बजाय हाथ मिलाया । इनको अपने विकास के रास्तों में कभी रौंदा नहीं, बल्कि विकास में हमसफ़र बनाया । पहाड़ों की ऊँचाई का ख़ूब लाभ लिया । इनके सर पर मद्धम-तेज़ गति से डोलती पनचक्की । सेवानिवृत्त लोगों का पसंदीदा अड्डा, जिनका पहाड़ चढ़ना सेहतमंद शौक़ है । यदि हमारी क्षमता दस मीटर की ही हो, मगर ज़रूरत हो बीस मीटर की, तो हम क्या करते हैं ? किसी ऐसी वस्तु के ऊपर खड़े हो जाते हैं, जिसकी ऊँचाई दस मीटर हो । दस दस बीस । यही नामसान टावर क

'प्रभात' की ख़ोज: दसवें ग्रह की खोज, मौलिकता के संघर्ष और विजय की कहानी (सम्पूर्ण भाग)

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 किसी चीज़ की महत्ता महज परिस्थितयों की दासी होती है। नहीं तो  ग़ज़लों में चुभने वाले  ग़ुलाब के काँटे, भला रेगिस्तान में नागफ़नी की पत्तियाँ होकर जान कैसे बचाते? सैकड़ों साल पहले  एलुमिनियम को पूछ सोने से भी अधिक थी। जो  एलुमिनियम के बर्तन  राजाओं की शान में इतराते थे, आज सड़कों पर हाथ फैलाते दीख जाते हैं। जिन नज़रों को देखकर कभी नशा चढ़ा करता है , समय बीतने पर उन्हीं को देख नशा उतर भी जाता है। वैसे, इश्क़ के इज़हार में रौशनी की बड़ी भूमिका है। ब्रम्हाण्ड के सबसे बड़े प्रकाश के कारक सूर्य देव जी हैं। पर पता नहीं क्यों इश्क़ कभी सूरज की रौशनी में नहीं पनपता। मानो, जैसे उजाले से छत्तिस का अकड़ा हो। इश्क़ के रिश्ते होते हैं अंधेरे और उजाले के हाशिये पर। चाँदनी रात, कैंडल लाइट  आदि के मद्धम उजाले में ही यह महफ़ूज़ रहता है। शायद प्यार का परदे में पनपना प्राकृतिक हो! मगर क्या ये इश्क़ लालटेन में भी हो सकता है? क्यों नहीं? ह पर  एक दूसरे क़िस्म का! किसी का उसके सपनों से इश्क़!! ऐसे क़िस्से हर क़िस्म की रौशनी में जन्म लेते हैं।   लालटेन! आज के इन्वर्टर के दौर में लालटेन की बिसात क्या है? राहुल के पापा को इन्वेर्टर

'प्रभात' की खोज: भाग ४-गुरु का मौलिक मार्ग

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भाग-१ 'माँ का मन' पढ़ने के लिए   CLICK करें।    भाग २- बदलाव, बेहतरी का?  पढ़ने के लिए   CLICK करें। भाग ३- गांधी जी की प्रेरणा!  पढ़ने के लिए   CLICK करें। क्रमशः भाग ४:   निर्धारित समय पर पी॰एन॰ सर और राहुल के पिता स्कूल में मिले। राहुल के पिता ने पी॰एन॰ सर के चरण स्पर्श किए, जो कि सर को भी थोड़ा असहज लगा। असहज इसलिए क्योंकि दूसरे अभिभावक ऐसा नहीं करते थे। पिता का शर्मिंदगी से मुँह ऐसा लटका था, जैसे परीक्षा उन्हीं ने दी हो। पिता जी, “गुरु जी, माफ़ कर दीजिए…अभी और मेहनत करेगा लड़का। बड़ा होनहार है। हिंदी से आया है…. बस थोड़ा टाइम लग रहा है।” पी॰एन॰ सर, सिर हिलाकर उनकी क्षमा याचना को टाले और पूछे, “आपने हिंदी में ही आगे क्यों नहीं पढ़ने दिया?” पिता जी, “गुरु जी, हिंदी में पढ़कर अच्छी नौक़री कहाँ लग रही है।” सर, “लेकिन अभी भी वो पढ़ तो हिंदी में ही रहा है…।” पिता जी अचंभित! चेहरे ने सवाल किया- ये क्या बात हुई? पी॰एन॰ सर जी ने पूरी बातें विस्तार से बताईं-कैसे राहुल अंग्रेज़ी क्लास-हिंदी किताब-अंग्रेज़ी कॉन्सेप्ट के तीन पाटों के बीच पिसता जा रहा है। कैसे वो  क्लास  में नज़रे चुराता-फ़िर

'प्रभात' की खोज: भाग ३- गांधी जी की प्रेरणा

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भाग-१ 'माँ का मन' पढ़ने के लिए   CLICK करें।    भाग २- बदलाव, बेहतरी का?  पढ़ने के लिए   CLICK करें। क्रमशः  भाग-३    घड़ी को एक हीन भावना (inferiority complex)  होती है। वो कितना हूँ चलती है, किंतु वो कभी आगे नहीं बढ़ती। उसी गोल घेरे में चक्कर खाती रहती है। ये उसका महज भ्रम है, असल में जर्मन मान्यता के अनुसार समय सीधी रेखा में चलता है। जो राज इंग्लिश स्कूल में भी चलता रहा। उस स्कूल में राहुल के लगभग तीन महीने बीत चुके थे। हमेशा खिलखिलाते रहने वाले   बच्चे का मुरझाया चेहरा देखकर मम्मी चिंतित रहने लगीं। चाँद-तारों, ग्रहों-नक्षत्रों की तहक़ीकात करने वाला राहुल अब टिमटिमाता जुगनू देखने में भी रुचि नहीं दिखाता था। भोर में मम्मी के सिर सहलाने मात्र से दन से उठकर बैठ जाने वाले लड़के को झोर-झोरकर जगाना पड़ता था। अब यह झोरना झाड़ने में बदल गया। अब राहुल की नींद बस डाँट से ही टूटती। देखते-देखते  छमाही इम्तेहान सिर पे आ गए। दिन-पर-दिन राहुल का आत्मविश्वास घटता हुआ नज़र आ रहा था। उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ। किताबों में खोया रहने वाला राहुल अब अपनी ही क़िताब खोज रहा था।      एक दिन राहुल सूट-बूट क

'प्रभात' की खोज: भाग २- बदलाव, बेहतरी का?

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भाग-१ 'माँ का मन' पढ़ने के लिए   CLICK करें।  क्रमशः  भाग-२ ... निर्माण का काम भगवान ही कर सकते हैं। माता-पिता बच्चों के भविष्य के विश्वकर्मा होते हैं।  भैतिकवादी किसी भी समाज में जब भी कभी यह ओहदा साक्ष्य के कठघरे में खड़ा होगा, तब निर्माण का यह सार्वभौमिक सिद्धांत कवच बनेगा। राहुल की अभी उम्र कच्ची थी, इसलिए उससे अंग्रेज़ी वाले स्कूल की राय नहीं पूछी गई। उसको पापा ने बताया कि अब वो नवीं से राज इंग्लिश स्कूल में पढ़ने जाएगा। उसकी राय नहीं ली गई, मगर उसको स्कूल बदली के कारणों की उत्सुकता तो ज़रूर थी। मम्मी ने कौतुहल की इस प्यास को शांत किया।   दिमाग़ का तेज़ होना और उस तेज़ दिमाग़ को धारदार बनाने के लिए मेहनत का पत्थर होना, ये दो ऐसी गंगा-जमुना हैं, जिनका संगम किसी अदृश्य सरस्वती में ही हो सकता है। जो इन सरस्वती की खोज कर ले, वो संसार का अगला आइंस्टाइन बन जाए। राहुल में उन्हीं सरस्वती नदी का वास था।  प्रवेश परीक्षा के लिए फॉर्म भरा गया।  पापा के निर्णय के प्रति समर्पित भाव से राहुल ने कमर तोड़ तैयारी की। प्रवेश परीक्षा अंग्रेज़ी  में होनी थी। उसने आठवीं का सारा पाठ्यक्रम अंग्रेज़ी की पुस्त

'प्रभात' की खोज: भाग १-माँ का मन 

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  किसी चीज़ की महत्ता महज परिस्थितयों की दासी होती है। नहीं तो  ग़ज़लों में चुभने वाले  ग़ुलाब के काँटे, भला रेगिस्तान में नागफ़नी की पत्तियाँ होकर जान कैसे बचाते? सैकड़ों साल पहले  एलुमिनियम को पूछ सोने से भी अधिक थी। जो  एलुमिनियम के बर्तन  राजाओं की शान में इतराते थे, आज सड़कों पर हाथ फैलाते दीख जाते हैं। जिन नज़रों को देखकर कभी नशा चढ़ा करता है , समय बीतने पर उन्हीं को देख नशा उतर भी जाता है। वैसे, इश्क़ के इज़हार में रौशनी की बड़ी भूमिका है। ब्रम्हाण्ड के सबसे बड़े प्रकाश के कारक सूर्य देव जी हैं। पर पता नहीं क्यों इश्क़ कभी सूरज की रौशनी में नहीं पनपता। मानो, जैसे उजाले से छत्तिस का अकड़ा हो। इश्क़ के रिश्ते होते हैं अंधेरे और उजाले के हाशिये पर। चाँदनी रात,  कैंडल लाइट  आदि के मद्धम उजाले में ही यह महफ़ूज़ रहता है। शायद प्यार का परदे में पनपना प्राकृतिक हो! मगर क्या ये इश्क़ लालटेन में भी हो सकता है? क्यों नहीं? ह पर  एक दूसरे क़िस्म का! किसी का उसके सपनों से इश्क़!! ऐसे क़िस्से हर क़िस्म की रौशनी में जन्म लेते हैं।   लालटेन! आज के इन्वर्टर के दौर में लालटेन की बिसात क्या है? राहुल के पापा को इन्वेर्