कोरोना (CORONA) मेरे कितने क़रीब था ? भाग-२

सादर प्रणाम,
पहले मैंने केवल एक ही पोस्ट बनाने का प्रयास किया था, लेकिन बहुत बड़ा होने की वजह से दो भाग में बाँटना पड़ा। भाग-१ पढ़ने के लिये यहाँ देखिएगा -कोरोना (CORONA) मेरे कितने क़रीब था ? भाग-१ 
कोरोना टेस्ट दिन के वृतान्त से पहले संक्षेप में कोरोना काल में अपनी भारत यात्रा की तिथियाँ बता देता हूँ, क्योंकि आगे इसके सन्दर्भ की जरूरत पड़ेगी:
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। 
  • २३ जनवरी , सीओल से नई दिल्ली (सीधे) से वाराणसी ; उस समय तक कोरिया में २-३ केसेस हो चुके थे और चीन का कोरोना संक्रमित नहीं होता है, वाले झूठ से पर्दा उठ चुका था।
  • १३ फरवरी , वाराणसी से बैंकॉक से सीओल; बैंकॉक में लगभग सवा घण्टे का ट्रांजिट था। बनारस हवाई अड्डे से मास्क लगाये और फिर कोरिया में ही सीधे हवा पान किये। डेटॉल का sanitizer तर्कश में और इधर-उधर अनायास हाँथ न डालने का मंत्र सबको फूँक दिया गया था। 


कोरोना परीक्षण का दिन, ६ मार्च  :

अनुवाद:"चेतावनी-कोरोना को रोकने के लिए
सारे आगंतुक सर्वेक्षण फॉर्म भरने का कष्ट करें।
गलत सूचना भरने पर लगभग रू. ६ लाख तक का ज़ुर्माना
देय
 हो सकता है। 
जब मैंने डॉक्टर को दिखाने का मन बना लिया, तो २४ x ७ कॉल सेण्टर को सुबह ६ बजे फोन किया। पता चला कि डॉक्टर सबकी जाँच नहीं करते हैं। अगर उनको लगता है कि जरूरी है, तभी लिखते हैं। अन्यथा वो केवल दवाई लिख देते हैं। मेरे लिए यह जानकारी राहत की सॉंस थी। मैं ईश्वर की प्रार्थना करते हुए कोरोना के निर्धारित हॉस्पिटल पैदल पहुँचा। इससे पहले बहुत सारे लोगों के पब्लिक यातायात का इस्तेमाल करके हॉस्पिटल पहुँचने वाले समाचार मिले थे। इसलिये पैदल गया, लगभग २ KM की दूरी थी।
    मैंने ऐसे लोग जीवन में पहली बार देखे थे ।  एकदम अंतरिक्ष यात्रियों वाली वेश-भूषा थी। बस उन देव-दूतों का हवा में तैरना मात्र बाकी था, नहीं तो वे साक्षात ईश्वर ही थे।  कोरोना लक्षण वाले लोगों का मुख्य हॉस्पिटल में प्रवेश वर्जित था। अगर कोई झूठ बोलकर या यात्रा सम्बन्धित सूचना को छिपाकर घुसने का प्रयास करता है, तो यह फोटो वहीं पर चिपकी थी, जिसमे दण्ड सम्बन्धित चेतावनियाँ लिखीं थी। हॉस्पिटल के बाहर एक टेन्ट में अस्थायी कोरोना हॉस्पिटल का इंतज़ाम था। प्रतीक्षालय, चिकित्सक परामर्श रूम, टेस्ट सैंपल कलेक्शन रूम, दवाई और शुल्क जमा करने तक की सारी व्यवस्थायें टेन्ट के अन्दर थीं। क्योंकि प्रतीक्षालय में लोग नहीं थे, तो पता नहीं चल पा रहा था कि मेरा कितना नम्बर है। सोशल डिस्टन्सिंग के तहत लोग इधर-उधर बिखरे हुए थे। अवलोकन करने पर पता चला कि एक व्यक्ति के परामर्श का समय लगभग ३० मिनट था। मैं इंतजार, घबराहट, परिकल्पनाओं के उस पार होने वाली कड़ी संभावनाओं से जूझने की हिम्मत जुटाने का प्रयास कर रहा था। तभी मेरी बायीं तरफ वाले मुख्य हॉस्पिटल का एक विभाग दिखा, जो कि ठीक आपात सेण्टर के बगल में था। वह नेगेटिव दाब वाला आइसोलेशन वार्ड था। मरीजों के परस्पर संक्रमण को रोकने के लिए हवा का दबाव नेगेटिव रखा जाता है। केवल यह आइसोलेशन वार्ड ही टेन्ट में नहीं था। मुख्य हॉस्पिटल का हिस्सा था। इसका मतलब कोरिया को पहले से ही इस तरह की  संक्रामक बिमारियों से निपटने का अनुभव था। फिर मेरी कल्पना उसके अन्दर के जीवन पर जाकर ठहर गयी।
     उधर दफ़्तर से मेरे साहब का मैसेज भी घड़ी-घड़ी आये जा रहा था। उनकी जिज्ञासा थी कि क्या टेस्ट होगा ? उन्होंने बोला कि दफ़्तर के ऊपर से लेकर नीचे तक सारे लोग मेरे संदेश का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मुझे लगा कि ऊपर के लोग नाम जानें, यह तो अच्छी बात है लेकिन जिस कारण से जानेंगें, वह अच्छी बात नहीं थी। फिर मैंने अपनी सोच को थोड़ा प्रगतिशील किया।  मैं टेस्ट लेकर अपने दफ़्तर के लोगों की भी तो सुरक्षा ही कर रहा हूँ। इन्ही सब ख़यालों के बीच .... मेरा नम्बर आ गया। केवल दवाई से ही काम चल जाय, ऐसी कामना के साथ मैं परामर्श कमरे में गया।
    दो शक्ति रूप में महिला चिकित्सक पूरे सुरक्षा कवच के साथ बैठी थीं। दोनों दुर्गाओं में बस आवाज़ का ही फ़र्क था, अन्यथा उनके अपने घर के लोग भी भ्रम में पड़ जायें।  उन्होंने पहले मेरे शरीर का तापमान और ऑक्सीजन स्तर चेक किया। सब सामान्य था। फिर गाँव, घर, मकान, यात्रा, ट्रांजिट इत्यादि सूचनाएँ बड़े धैर्य से पूछती गयीं और कंप्यूटर में लिखती गयीं। मैं १४ फरवरी को भारत से कोरिया वापस आया था। उसके बाद मौसम परिवर्तन सम्बंधित कुछ स्वास्थ्य ख़राब हुआ था, वो सब जानकारियाँ लिखीं। फिर वरिष्ठ डॉक्टर ने बोला कि उनके अनुभव के आधार पर मुझे कोरोना नहीं लगता है लेकिन यात्रा के कारण मेरा टेस्ट करना पड़ रहा है। दवाई भी मिली जो कि टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव आने पर भी खाने को बोलीं।
भारत का नाम सुनने पर कोरिया में बड़ी इज्ज़त मिलती है, महिंद्रा और टाटा यहाँ पर मशहूर हैं। योग के नाम पर भी फिटनेस सेण्टर ख़ूब पैसा कमाते हैं।
वरिष्ठ महिला डॉक्टर -"इंडिया में तो कोरोना का टेस्ट नहीं कर रहे हैं। "
मैं -"वहाँ मरीज बहुत कम हैं (उस समय १० के लगभग थे), ३ वुहान से आये (केरल में) थे, वो ठीक हो गये। "

   टेस्ट सैम्पल के तौर पर गले और नाक का swab दूसरे टेन्ट में लिया गया। Ear Bud के जैसा, ६ इंच लम्बा लकड़ी खोंसकर सैम्पल निकाले। एक हफ़्ते नाक में दर्द था। सैम्पल देने के बाद मुझे सेल्फ आइसोलेशन के लिए बोला गया। रिजल्ट २४ घंटे के अंदर SMS के माध्यम से आना था लेकिन टेस्ट किट का रिजल्ट टाइमिंग ६ घण्टे का है, ऐसा मैंने सुना था। अगर रिजल्ट पॉजिटिव होगा, तो आज ही मैं आइसोलेशन वार्ड में आ जाऊँगा, मुझे इसका भी अनुमान था।



  पैदल घर पहुँचा। १४ दिन के आइसोलेशन की तैयारी का मन बनाते हुये एक रूम में रूम हीटर चलाकर रूम गरम किया। क्योंकि उस समय तक वायरस के बारे में ऐसा माना जा रहा था कि कोरोना गर्मी में नहीं पनप पाता है। हॉस्पिटल में भी सारे जगहों को गरम करके रखा गया था। काढ़ा दिन में ३-४ बार पिया। उस दिन परिवार से दूर रहा और कमरे में भी मास्क लगाये रखा। खाना अकेले खाना पड़ा, एकदम अलग ख़याल आ रहे थे।  सबको अपने से दूर रखना आसान नहीं हो रहा था। यह बीमारी ही ऐसी है।  रात में १०:३० बजे तक फोन आते रहे।  बहुत सारे लोग हौसला बढ़ाने के लिये फोन किये। एक महोदय ने बोला कि मैं तनिक न घबराऊँ, क्योंकि अगर कोरोना हो भी गया, तो भी बच जाऊँगा। मेरे सम्पर्क में आये हुए लोगों ने भी सम्पर्क किया। उन लोगों ने अपने आपको सेल्फ आइसोलेट कर लिया था। वो मेरे टेस्ट रिजल्ट की प्रतीक्षा में थे । अगले दिन मेरे जगने से पहले ही रिजल्ट जानने वालों के SMS आये पड़े थे। मैंने कॉल सेण्टर में फोन किया और पता चला :
"음성" नेगेटिव है। "
यह ख़बर गुड न्यूज़ जैसी ही थी, क्योंकि २-३ हफ़्ते का सामान्य जीवन दान मिला था।
ईश्वर और ईश्वर के समान शुभचिंतकों का आभार प्रकट करने का एक बड़ा कारण था।
सब लोग राहत की साँस लिए।

"काढ़ा बना दूँ ?" धर्मपत्नी ने पूछा।
"छोड़ो यार, अब कड़क चाय बनाओ। काढ़े का टाइम बीत गया।"

  बहुत दिन बाद जब चीजें सामान्य हुईं, तब खेती वाले कोरियन दोस्त से मिला। वो मना रहे थे, कि काश उनको कोरोना हो जाता, तो २-३ हफ़्ते की पेड छुट्टी मिल जाती। वो काम से बहुत लदे रहते हैं, इसलिये ऐसी साहसिक कामना लिए फिरते हैं। यहाँ पर इस तरह की बीमारी से ग्रसित लोगों को ७० % वेतन देने का सरकारी प्रावधान है। वैसे कोरिया में कार्यरत एक भारतीय मित्र भी ऐसी ही साहसिक इच्छा जाहिर किये थे। ये इच्छायें मेरे वश और समझ से परे हैं।

  यह एपिसोड साझा करने का उद्देश्य केवल आपको सतर्क करना है। समय रहते इलाज कराना ही इसका सही उपाय है, ताकि हम अनजाने में ही अपने चाहने वालों को मुश्किल में न डाल दें। भगवान न करें, कि किसी की पॉजिटिव रिपोर्ट आये लेकिन अगर आ भी जाय तो धैर्य और साहस के साथ भिड़ें, क्योंकि आपकी इच्छाशक्ति से बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता है। श्रीमद् भागवत गीता से:
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
सुरक्षित रहें, सजग रहें लेकिन चिंता मुक्त रहें, नहीं तो कोरोना की चिंता से ही बहुत सारी दिक्कतें शुरू हो सकती हैं।
सादर प्रणाम
-आपका नवीन
********************************************************************************
आपके आशीष से बच्चों के लिये एक पिक्चर बुक पर काम चल रहा है। जल्द ही आपके हाँथ में देने के लिए यत्नरत हूँ । 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मशीनें संवेदनशीलता सीख रही हैं, पर मानव?

हुण्डी (कहानी)

कला समाज की आत्मा है, जीवन्त समाज के लिए आत्मा का होना आवश्यक है।