सपने


अगर आपके सपने सच्चे हैं तो पलक से फ़लक पे उतर ही आएँगे। सपने की सच्चाई उसकी उदारता पर निर्भर करती है। स्वार्थी सपने मिथक होते हैं, माया में लिपटे होते हैं। वे मृग-मरीचिका की भाँति लुभाते हैं, पर कभी साकार नहीं होते। इनका आजीवन पीछा करने पर भी अंत में निराशा और असंतोष ही हाथ लगता है। तो क्यों नहीं अपने सपनों में औरों को सजाया जाए!

क्यों नहीं किसी के नन्हें ख़्वाबों को पंख दिये जाएँ!

क्यों न ऐसा हो कि दूसरे के सपने साकार करना ही अपना सपना बन जाए!

अगर ऐसा होने लगे तो सिकुड़ती धरती शायद अपने आकार को बचा सके। यह उदारता चंद लोगों को नसीब होती है। काश उन नसीबों में मेरा भी एक होता! 

-काशी की क़लम


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