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कोरोना (CORONA) हमारे कितने क़रीब था ? भाग-१

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सादर प्रणाम ! वर्तमान में कोरोना से सम्बंधित सूचनाओं की बाढ़ इंटरनेट की गंगा पर आयी हुयी है। मैं इस बाढ़ में एक बूँद और जोड़ना नहीं चाहता था, लेकिन मुझे लगता है कि कोरिया अनुभव का एक अर्घ्य देने का उचित समय आ गया है । आज जब भारत में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही हो और कोई स्थायी समाधान आगे न दिख रहा हो, तब मन का घबराना स्वाभाविक हो जाता है। इस भयावह मंजर को मैंने कोरिया में देखा है और आपके साथ उसका एक पहलू साझा करना चाहूँगा। आपके सामने इसको रखने का मक़सद केवल आपकी धड़कनों की गति को सामान्य करने का हैऔर भरोसा दिलाने का, कि इससे सबलोग मिलकर उबर जायेंगे। सैन्य धर्म की ज़रूरत :  फोटो साभार -गूगल आपको दाहिने चित्र वाला डब्बा याद है ? बचपन में हमारा पेंसिल बॉक्स हुआ करता था। इसपर FRONTIER लिखा है और एक सैनिक युद्ध करता हुआ दिखता है। ऐसा लगता है कि सैनिक डब्बे से बहार निकल आएगा। आज आप यहीं सैनिक हैं, जो इस महामरी से जूझ रहे हैं। लेकिन इस लड़ाई में बहुत सारी सीमाओ में रहना पड़ रहा है। एक सैनिक, जो देश की आन की रक्षा करता है और जरूरत पड़ने पर बलि भी दे जाता है, क्या कभी च

श्रद्धांजलि-इरफ़ान खान

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साभार:गूगल सिनेमा का एक सितारा जो टूट गया। पर्दा देखने का एक बहाना छूट गया। अदाकारी का मोती सागर में समा गया। ज़माने की ऑंखो में खुद को जमा गया। मौत भी न चैन पाती होगी। बस उन आँखो में गोते खाती होगी। माटी भी तेरी मुस्कान सहेजी होगी। जब आईने में ख़ुद की देखी होगी । साँस-समर में समर्पित हुए तो क्या ? काल-कराल को अर्पित तो क्या ? स्मृतियों में अजर रहोगे तुम। संघर्ष-शैया पे अमर रहोगे तुम। 😭🎕 -नवीन

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते' से लेकर 'पराधीन सपनेहु सुख नाही' तक नारी को अबला बनाने का कुत्सित सफल प्रयास

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सादर प्रणाम ! आज सीता जी के राम द्वारा त्यागे जाने की सत्यता पर बहुत सारी बहसें छिड़ी हुयी है। मूल ग्रंथों में राजनैतिक और सामाजिक कारणों से राम के चरित्र में जोड़ा-घटाया गया है। आज मेरी चर्चा का विषय इस एक प्रकरण की सत्यता की पुष्टि को लेकर नहीं है। लेकिन हमारे समाज में महिलाओं की जो स्थिति है उसके पीछे के कारणों को प्रकाशित करने की है। यह सामाजिक ओहदा ग्रन्थ रचयिताओं द्वारा जानबूझकर गढ़ा गया है। जहाँ भी शास्त्रों में स्त्रियों के प्रति भेदभाव वाली भाषा लिखी गयी है या फिर पुरुष प्रधान समाज को स्थापित करने का प्रयास किया गया है, इन सबका श्रेय उन रचनाकारों को जाता है। लेकिन जो मूल भारतीय वैदिक संस्कृति है उसमे महिलाओं को ही नहीं, मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि सब जीवों को एक माना गया है। तो फिर हम समय के साथ सबको कैसे बाँट दिये ? किसी मनुष्य को अबला और किसी को बाहुबली के ख़िताब से कैसे नवाज़ दिये ? इन्ही सवालों के साथ आइये झाँकते हैं अपनी मूल संस्कृति में नारी के स्थान में और कृत्रिम सभ्यता में जिसमें सभ्यता के नाम पर स्त्रियों का दमन और शोषण किया जा रहा है।  मूल मंत्र:  यत्र नार्यस्तु 

कोरिया की शौक़िया खेती : Video

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नमस्ते! इस वीडियो में कोरिया की शौकिया खेती के निम्न बिन्दुओ को दर्शाया गया है : १. पौधे की दुकान २. खेत और आस-पास ३. Lettuce रोपण

सशक्त लोकतंत्र की नींव: शिक्षा

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सादर प्रणाम !  लोकतंत्र के चार स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मिडिया माने गए हैं। कुछ देशों में एक या दूसरे पर कम अथवा अधिक भार है, लेकिन भारत में इन सारे खम्भों पर सामान भार है। मतलब लोकतंत्र बहुत मजबूत। इन सब स्तम्भों का विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि सारे खम्भों की नींव में वहाँ के लोग ही विद्यमान हैं। नींव जितनी गहरी, नींव का सामान जितना मजबूत और जितनी सधी हुयी हो, खम्भा उतना ही मजबूत होता है। और उन खम्भों पर टिकी इमारत उतनी ही दिर्घायु होती है। इसलिए लोगों की बुद्धिमत्ता, उनकी आत्मनिर्भर सोच ही निर्धारित करती है कि उस राष्ट्र का लोकतंत्र कितना सशक्त और परिपक्व है ।  जागरूकता का रास्ता  शिक्षा के भट्ठे से गुजरता है। तभी वो अच्छी नींव की  ईंट बन सकते हैं। और लोग अगर समझदार होंगे तो वो चुनाव में सही चयन करेंगे। उनका चहेता प्रत्याशी किसी भी जाति, धर्म,समुदाय का हो, वो उससे परे उठकर काबिल को चुनेंगे। लोग पैसे लेकर अपना ज़मीर नहीं बेचेंगे। क्योंकि जो पैसा देकर मत लेगा वो अपना पैसा कहीं न कहीं से तो निकालेगा ही। और ये आपका पैसा ही होता है। हाल ऐसा है कि लोग एक बार पैसा ले

कोरिया की शौक़िया खेती :एक परिचय

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सादर प्रणाम! कोरिया में सबसे अद्भुद काम एक विदेशी के तौर पर अगर मैंने कुछ किया है है तो वो है खेती। ये काफ़ी चौकाना वाला है और मुझे नहीं लगता है कि शायद किसी और विदेशी को इस काम को करने का सौभाग्य मिला हो। अब भारत में किसानों के अखबारी हालत या नेताओं के भाषण से तो लगता है कि यह सभाग्य है लेकिन अगर किसी मध्यम या छोटे किसान से आप बोलेंगे की आप तो देश के पालनहार, अन्नदाता, पोषणकर्ता, भगवान हो तो यह बात जले पे नमक के सामान होगी और आप किसान की खरी-खोटी सुनने के लिए अपना कलेजा कठोर किये रहियेगा। क्योंकि वास्तविकता ये है कि ऐसा किसान अपने परिवार को दो जून की रोटी जुटाने में बाल सफ़ेद करता है। उसकी पैदावार के समय चीजें के दाम घास-भूसे की तरह होते हैं लेकिन सीजन बीतने पर वहीँ सामान सोने के भाव खरीदना पड़ता है। बस विरासत में मिली जमीन के मोह में वो हल चलाता रहता है। यह सौभाग्य कम लाचारी ज्यादा है। वीकेंड फार्मिंग 주말 농장:  कोरिया में यह  व्यवस्था बहुत ही रुचिकर है। कोरिया के हर बड़े शहरों में सरकारी जमीन पर उस शहर के लोग अपने मन पसंद की साग-सब्जियां उगा सकते हैं। ये जगहें शहर के बहुत बीचो-बीच होत