चावल-दाल vs. Carb-Protein
पहले खाने में चावल-दाल होता था, अब कार्ब-प्रोटीन (कार्बोहाइड्रेट-प्रोटीन) हो गया है।
खाना उल्लास से खाया जाता था, अब डर-डर के खाया जा रहा है।
खाना उपहार हुआ करता था, उपहास बनने लगा है।
खाना रिश्तों को जोड़ता था, कार्ब-प्रोटीन सबको disintegrate कर रहे हैं।
उत्सव होने वाला खाना, भाग-दौड़ में औपचारिकता बनके रह गया है।
रोटी के लिए रोज़ी हो रही है, पर रोटी लिए वक़्त नहीं है।
सब बैठके खाना जोहते थे, अभी टेबल पे कार्ब-प्रोटीन सबका इंतज़ार कर रहे हैं।
कार्ब-प्रोटीन है पर पोषण ग़ायब है। ये न तो तन को लग रहे हैं, न ही मन को और न ही जीवन को।
खाने पे बहुत ध्यान देने की ज़रूरत है। ऐसे खाने की ज़रूरत है जैसे कभी मिला न हो। खाने और आपके बीच किसी etiquette की दीवार न हो।
खाने के लिए आपकी पृथ्वी परिक्रमा करना बंद करनी चाहिए। संसार ठहरना चाहिए।
-काशी की क़लम

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