संदेश

अप्रैल, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सृजन के विभिन्न चरण और उनसे उतरती हुई गीता की पेंटिंग।

चित्र
 इस सुंदर चित्र का सृजन गीता के हाथों हुआ है । सृजन की प्रकिया के कई चरण होते हैं । कभी कोई ख़याल मन को छू जाता है । कभी कोई बात चुभ जाती है । कभी दुनिया को बदलने की ठानी जाती है । कभी भविष्य में झाँकने का मन करता है । कभी एक अपने मन की दुनिया की कल्पना होती है । इस तरह उपजती है एक सोच । यह सृजन का पहला चरण होता है। फिर इसको अमली जामा पहनाना पहनाने पर विचार होता है। विचार के संचार के लिए साधन की ज़रूरत होती है। कला। एक सोच को संसार में संचारित करने के लिए कला ही एक मात्र साधन है। कला के इस पहलू का उपयोग विज्ञान, तकनीकी, इत्यादि ब्रह्माण्ड के सभी क्षेत्रों में होता है। यहाँ कला को संकुचित विचारधारा से देखने पर शायद समझ नहीं आए। कला को टेक्निकल तौर पर देखने के बजाय इसकी सृजन शक्ति को जानना की आवश्यकता है। नए-नए आविष्कार कला के गर्भ से निकलते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने द्वारिका नगरी के सृजन के लिए स्वयं सृजन-देव विश्वकर्मा जी से विनती की थी। सृजन का अगला चरण है संचार के माध्यम का चुनाव। शब्द, चित्र, स्वर, इत्यादि अभिव्यक्ति के संचार के साधन हैं। इन मूलभूत माध्यमों के कई स्वरूप विकसित हो...

ज़ीने (सीढ़ियाँ)

चित्र
(ज़ीना-सीढ़ी)  लिफ़्ट के दौर में ज़ीने जो बिसर जाएँगे भुलाकर बहाना पसीना, किधर जाएँगे? ज़ीने के सफ़र जाइए या लिफ़्ट के चढ़ न सकेंगे दोबारा, जो नज़र से उतर जाएँगे।   ज़ीने  ज़मीर हैं, इन्हें न ठुकराइये ज़नाब ! आपात में आप ज़ीने की ही डगर जाएँगे। औरों की गवाही से साबित ख़ाक होगा जब आप आप से ही मुक़र जाएँगे। दग़ा देगी लिफ़्ट जो, ये ज़ीने याद करना ज़ीने के रास्ते मुक़द्दर आपके घर जाएँगे। -काशी की क़लम

जब-जब राहों में रोड़े मिलें, मन के हाथों हथौड़े मिलें (कविता)

चित्र
 ध्यान जहाँ भटका, आदमी वहीं अटका। लक्ष्य पावन साधो, भेदने सर्वस्व लगा दो। जब-जब राहों में रोड़े मिलें, मन के हाथों हथौड़े मिलें। धर्म की राह कड़ी होगी, उसपे जीत बड़ी होगी। -काशी की क़लम

जिसकी भुजाएँ चार त्वचाएँ जालीदार, वो कौन? गाँव बसर।

चित्र
पहेली: मेरे पास भुजाएँ चार हैं, मेरी त्वचायें जालीदार हैं। फैलकर चार दीवार बनाती हूँ, उसके ऊपर छत भी छवाती हूँ। सूरज ढलने पे होता मेरा विस्तार है, सूरज उगने पे घटता मेरा आकार है। पलंग, चारपाई, बिछौनों की मेरी सवारी है, आपकी सोने पर आती जागने की मेरी बारी है। अपने आँचल में चैन की नींद सुलाती हूँ, माँ नहीं, पर हवा भी छानकर पिलाती हूँ। बुख़ार छेड़ने वालों के विरुद्ध कवच सिलाती हूँ। जो मेरे जानी दुश्मन, उनकी ‘दानी’ कहलाती हूँ। तो बताइए, मैं कौन हूँ?