श्रम के मोती-आशा की ज्योति (कविता)
बंजर ज़मीन पे भी हरियाली छा जाती है,
स्वप्न-बीज जो आशा से सिंची जाती है।
बाढ़-सूखे की रस्म तो आनी-जानी है,
सबसे ऊपर ऊपरवाले की मेहरबानी है।
संघर्ष की सड़क पर स्वेद-मणि उभरेंगे,
उस मणि के उजाले हर अंधेरे को हरेंगे।
तप की स्वेद-मणियों की जप माला,
बन्द रास्तों का खोलेगा यह ताला।
जहाँ आशा-ज्योति औ श्रम-मोती है,
विधि उनके भाग्य सँजोती है ।
-काशी की क़लम
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