लीडरशिप के पहलू ।
लीडरशिप एक विज्ञान है या कला?
लीडरशिप को यदि एक क्रमवार, स्थिति-आधारित दिशा निर्देशन के रूप में देखा जाये, तो यह विज्ञान है। इस लीडरशिप में काम तो चल है, लेकिन काम करने वाले साथ नहीं चलते। वे वहीं-के-वहीं रह जाते हैं। वे जुड़ते भी नहीं हैं। इसमें लीडर और लोगों के बीच का सम्बन्ध सतही तथा औपचारिक होता है। दोनों एक-दूसरे से कभी असल में जुड़ नहीं पाते। इसमें सम्मान कुर्सी का होता है, कुर्सी पे बैठने वाला कभी सम्मान अर्जित नहीं कर पाता।
कला का उद्गम आत्मा से होता है। इसलिए कला के माध्यम से किया गया हर प्रयास आत्मीय होता है। कला सब प्रकार की बंदिशों से परे, उन्मुक्त भावों की अभिव्यक्ति है। अतः यदि कहीं गहरे और सच्चे जुड़ाव की बात होगी, उसके केंद्र में लीडरशिप अपनी कलात्मक शैली में मिलेगी। इस लीडरशिप में लीडर और लोगों का जुड़ाव इनसाइड-आउट तथा गहरा होता है। लीडर में बिना अधिकार जताए लोगों का नेतृत्व करने का सामर्थ्य होता है। उसके सहज व्यक्तित्व के गुरुत्व से लोग स्वतः खिंचे चले जाते हैं। लोग काम को लीडर का नहीं, बल्कि अपनाकर करते हैं। कला साधना करने वाला लीडर लोगों पे लदता नहीं है, बल्कि उनके पंखों को उनका आसमान देता है।
विज्ञान लीडरशिप को एक अनुशासन देता है। कला लोगों की अनुगूँज होती है। चूँकि संसार लोगों से चलता है इसलिए कला पक्ष की प्रबलता पर लीडरशिप की सफलता निर्भर करती है।
लीडरशिप सख़्त होना है या सोख़्ता (sponge)?
सख़्त निर्णय लेने वाले लीडर दुनिया के चहेते होते हैं। सतह पर जो सख़्ती इन लीडरों की मज़बूती प्रतीत है, गहराई में उतरने पर वह उनकी मज़बूरी भी हो सकती है। ऐसे ताक़तवर लीडर असुरक्षा में जीते हैं। उनको अपनी शक्ति खोने का डर बना रहता है। इस असुरक्षा के कारण वे किसी अन्य लीडर को पनपने नहीं देना चाहते। इस स्वार्थ में ये अपने पीछे एक बड़ा लीडरशिप वैक्यूम छोड़ जाते हैं। आलोचना सुधार का यंत्र है। सख़्त लीडर अपनी आलोचना से घबराते हैं। क़सीदे पढ़ने वाले लोगों के झुण्ड से घिरना पसंद होता है।
सोख़्ता (sponge) लीडरशिप। जो सबकी सुनके आचरण करेगा, वो लीडर सोख़्ता (sponge) के समान सभी के इरादों को समाहित करता चलेगा। उसकी नरमी लोगों को अपनी बात कहने के लिए प्रेरित करेगी। बात का सुना जाना एक गोंद के समान है। यह गुण लोगों को जोड़ता है। जैसे कई सूतों के संरचनात्मक जुड़ाव से एक मज़बूत रस्सी बनती है, उसी प्रकार कई लोगों के जुड़ने से लीडर को मज़बूती मिलती है। बाँस के पतले रेशों के प्राकृतिक जुड़ाव में बाँस की मज़बूती होती है। साथ ही, बाँस का लचीलापन उसकी शक्ति होता है। यह उसके सर्वाइवल में सहायक होता है। जिस लीडर से लोग नैसर्गिक रूप से जुड़ते हैं, वो लीडर बाँस के जैसे उतना ही अधिक मज़बूत और ऊँचा उठता है। जो लीडर अधिक सोखने का सामर्थ्य रखता, उतना ही अधिक शक्तिशाली होता है। अतः लचीलापन, सोख़्तापन उच्च कोटि के लीडरों के श्रेष्ठ गुण हैं।
-काशी की क़लम
लीडरशिप को सही प्रकार से परिभाषित किया गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
Jay ho Om namo Narayan 🙏🌹
जवाब देंहटाएंअद्भुत क्षमता का व्यक्तित्व ही इस विषय को सरल हिंदी भाषा में परिभाषित कर सकता है । यह गुण इस अविनाशी काशी की सरहद से लगे, माँ गंगा किनारे का एक व्यक्ति आप, जो विदेश में रहकर विज्ञान का होते हुए भी बखूबी परिभाषित किया, निश्चित रूप से महादेव का ही आशीर्वाद है । धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरुदेव 🙏
हटाएंBohot hi bhadiyan 🎉
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