तेरह साल बाद आप अपने बच्चे में क्या ढूंढ़ेंगे ? (अमेरिकी संस्मरण)



 तेरह साल बाद आप अपने पाँच साल के बच्चे में क्या ढूंढ़ेंगे ?(अमेरिकी संस्मरण)

छोटी बेटी का दर्ज़ा बड़ा हो गया था। अब वो प्री-स्कूल से किंडरगार्टन में जाने वाली थीं । दर्ज़े के साथ-साथ स्कूल भी काफ़ी बड़ा हो चला था। अमेरिका में प्राइमरी स्कूलों में कक्षाएँ किंडरगार्टन से लेकर दर्ज़ा पाँच तक की होती हैं। नए स्कूल से ओरिएंटेशन का निमंत्रण था। स्कूल के सभी अध्यापकों का अभिभावकों से प्रथम परिचय का दिन। प्रधानाचार्य महोदय जी उस परिचय शो के संचालक थे। उनकी उम्र तक़रीबन साठ साल पार होगी। बाल चमकते, जैसे चाँदी। चेहरे पे तेज, जैसे जलती बाती। उम्र भले ही चढ़ गई हो, लेकिन उनका जज़्बा…छः साल के बच्चों जैसा। शायद उनकी ऊर्जा का राज़ “ A man is known by the company he/she keeps” की लाइन में छुपा हो। बच्चों की चंचलता, उत्सुकता के बीच रहते-रहते मानिए ये गुण प्रधानाचार्य महोदय के अंदर समाहित हो गये हों। अपना परिचय देने के बाद उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी अभिभावकों से एक सवाल पूछा,” आपका बच्चा/बच्ची लगभग तेरह साल बाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाएगा/जाएगी। यूनिवर्सिटी में जाने के लिए आप बच्चे में क्या-क्या खूबियाँ विकसित करना चाहेंगे?”

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अमेरिकी विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ पर्सनालिटी (व्यक्तित्व) पे भी पूरा फोकस रहता है। किताबी कीड़ों को अच्छे विश्विद्यालयों में जगह नहीं मिलती। इसलिए प्रधानाचार्य महोदय जी ने यह दूरगामी सवाल उछाला था। इस सवाल ने मेरे साथ-साथ अन्य अभिभावकों को भी चौंकाया। मुझे कैसे पता चला कि और लोग भी चौंक गए? सवाल सुनने के बाद अभिभावक अगल-बग़ल के चेहरों को देखकर मुस्कुरा रहे थे। चेहरे के उगे हुए असमंजस के भाव से मुझे लगा कि इस सवाल का अभ्यास अभिभावक लोग नहीं किए हैं। सवाल ने चौंकाया इसलिए, क्योंकि हम बच्चों को छोटी रेस का घोड़ा बनाने में लगे हैं। गणित में नम्बर, अंग्रेज़ी में स्पेलबी, आदि की दौड़ों में अव्वल देखना चाहते हैं। इस छोटी स्प्रिंट के चक्कर में बच्चों को जीवन की मैराथॉन की तैयारी कराने में हम चूक रहे हैं। 

थोड़ी देर बाद अभिभावकों के उत्तर आने लगे। ये उत्तर बहुत ईमानदार थे। करुणा, सहनशील, दयावान, नैतिकता, अच्छा नागरिक, ईमानदार…, ऐसे बहुत सारे ज़वाबों से माहौल गूँज रहा था। यदि आप सोच रहे होंगे कि मैंने क्या बोला? यही सवाल दाहिनी तरफ़ बैठी गीता (धर्मपत्नी) भी नज़रों से पूछ रही थीं। मैंने चुप रहा। इस प्रश्न का ज़वाब मैं अपनी एक कहानी “प्रतियोगिता” में पहले ही दे चुका था। इस कहानी में बुद्धिमत्ता बनाम व्यक्तित्व की दौड़ में व्यक्तित्व की विजय होती है। प्रधानाचार्य जी ने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि हम अभिभावकों में से किसी ने ये नहीं कहा कि बच्चा गणित में अव्वल चाहिए, टॉपर चाहिए,…। सभी अभिभावक यही चाहते हैं कि बच्चे में वो गुण और कुशलतातायें हों, ताकि वो बड़ा होकर जीवन की खट्टी-मीठी परिस्थितियों का सामना ख़ुद कर सके। इन सबके विकास के लिए प्रधानाचार्य जी ने सभी अभिभावकों से सहयोग माँगा। सहयोग इसलिए कि घर पर भी बच्चों से यही उम्मीद रखें और इनको विकसित करने के लिए उचित वातावरण दें।

इस सवाल और ज़वाब के साथ-साथ कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें भी उन्होंने बताईं, जिसको एक-दो लाइनों में कहने का प्रयास कर रहा हूँ:

घर पे आदतें विकसित करें, अच्छी।

अभिभावक भी स्क्रीन टाइम ( फ़ोन) कम करें, तभी बच्चे भी उसका अनुसरण करेंगे। walk the talk.

बच्चों की मदद तभी करें, जब उन्हें चाहिए। स्वावलंबी बनाएँ।

बच्चों को असफलता से बचाने की ग़लती न करें। असफलता से उबरना सिखाएँ।

कार्यक्रम समाप्त हुआ । प्रधानाचार्य जी का नाम Mr. Scher था। मैं और गीता उनके पास गये और उनका नाम दोबारा पूछा। वह इसलिये क्योंकि उनके नाम के उच्चारण से मैं आश्वस्त होना चाह रहा था। सरनेम का उच्चारण  ‘शेर’ मिला, जो कि मेरा आकलन भी था। तब मैंने उनको कहा कि उनके नाम का उच्चारण का हिन्दी में मतलब Lion है। महोदय जी ठहाके लगाये और कहा कि आज जाकर अपनी बीवी को बोलूँगा कि मैं शेर हूँ। मैंने मन में कहा “अरे सर!  बीवी के सामने तो सब बकरी ही हैं!”

-काशी की क़लम

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