जोश भी हो होश भी हो (कविता)

छायांकन, अनुष्का सिंह के सौजन्य से 

सागर हो या हो पहाड़

खाई मिले या मिले झाड़

गंगा तेरी रग में बसतीं

तान के झण्डा हर दर दे गाड़।


जोश भी हो, होश भी हो

आदमियत का उद्घोष भी हो

ज़बर न हो ज़ोर न हो

प्रेम से ले हर सीने में आड़।


तिनका-तिनका माटी-माटी

है रंगमंच बम-बम चौपाटी

तन से तान मन से ठान

देगा वो सब छप्पर फाड़।


चिंगारी देख धधके पुआल

पल में बमके करे बवाल

मद्धम-मद्धम चिर अन्दाज़

लकड़ी-सा जल, जाड़ा उजाड़।


रज तेरी राख नहीं, हो भस्म

तप-ताब की रखता जो रस्म

रख प्यास अविरल आस की

भय पछाड़, उठ दहाड़।

-काशी की क़लम

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