हाथ मरुधर को भी जीवन्त कर दे साथ पतझड़ में भी बसन्त भर दे।
चित्र साभार: गीता सिंह
हाथ मरुधर को भी जीवन्त कर दे
साथ पतझड़ में भी बसन्त भर दे।
शब्दों की सजने की तिश्नगी देख
वो मयूर अक्षर-अक्षर पंख दिगन्त भर दे।
सफ़ेद पन्नों पे स्याह रोशनाई
वो बीच कहानी में रंग अनन्त भर दे।
ज़माना मगन है जिस दिल से खेलने में
वो ख़ालिस दिल में जोश ज्वलन्त भर दे।
राह काँटों का ‘निरीह’ मुसाफ़िर
उसकी मुंतज़िर पलकें सबके अन्त भर दे।
-काशी की क़लम
👍
जवाब देंहटाएंवाह नवीन। उत्तम
जवाब देंहटाएं👍🏻👏
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