मुझे इन ख़ंजरों से डराना नहीं दिल मेरा ऐसों का कबाड़खाना है।


मुझे इन ख़ंजरों से नहीं डराना है

दिल मेरा ऐसों का कबाड़खाना है।


अपनों ने दिए ज़ख़्म ग़ैरों ने नहीं  

फिर खोलकर किसको दिखाना है !


मोहब्बतों की इबादत ये छोड़ा नहीं

बेक़ाबू दिल मेरा है या बेगाना है।


अपने ही ख़ून में ये दुनिया डूबे नहीं

अब वक़्त को ही इतिहास बचाना है। 


आदमी इतनी हिक़ारत रखता नहीं

‘निरीह’ से कह दो न कश्मीर! ये अफ़साना है।


-काशी की क़लम



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