हमें ख़तावार ठहराके भी वो नज़रें झुकाये हैं
हमें ख़तावार ठहराके भी वो नज़रें झुकाये हैं
ख़ताएँ नहीं भूलीं अपनी ये अदायें हैं।
ईमान की लब्ज़ भले न हो मगर
दबाए दबती नहीं ये पाक़ सदायें हैं।
मत कोसो मेरे इन अय्यारों को
इनके दिए दर्द ही मेरी दवायें हैं।
फूल भरी मेरी राह की दुआ न करो
इन पाँवों तले अंगारों की रेखायें हैं।
इन काग़ज़ी गुलदस्तों पे मुस्कुराना कैसा
चन्द पलों की ये इत्र की फ़िज़ायें हैं।
-काशी की क़लम
वाह नवीन वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌🏻👌🏻👍🏻👍🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंNice !!
जवाब देंहटाएंBahut badiya
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