हमें ख़तावार ठहराके भी वो नज़रें झुकाये हैं


हमें ख़तावार ठहराके भी वो नज़रें झुकाये हैं

ख़ताएँ नहीं भूलीं अपनी ये अदायें हैं।


ईमान की लब्ज़ भले न हो मगर

दबाए दबती नहीं ये पाक़ सदायें हैं।


मत कोसो मेरे इन अय्यारों को

इनके दिए दर्द ही मेरी दवायें हैं।


फूल भरी मेरी राह की दुआ न करो

इन पाँवों तले अंगारों की रेखायें हैं।


इन काग़ज़ी गुलदस्तों पे मुस्कुराना कैसा

चन्द पलों की ये इत्र की फ़िज़ायें हैं।


-काशी की क़लम


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