क्या करते हो ? ज़वाब में यदि कुछ सर्वमान्य करने का आगम हो, तो सम्भाला जा सकता है। यदि न हो, तो हाथ लगता है प्रश्नवाचक चिन्ह ! समाज का एक ऐसा तबका है, जो कभी यह खुलके बता नहीं पाता कि वो करता क्या है। जो प्रत्यक्ष दिखता है, उसी की महत्ता है, लेकिन जो हम देख नहीं पा रहे हैं, वो कैसे कम महत्वपूर्ण है ! कस्तूरी कुण्डली.. या हमारी इसी उपेक्षा के परिणामों में से एक है कि परिवार को दिशा देने वाला ध्रुव तारा अपनी चमक खोता जा रहा है। इस धूमिलता का ख़ामियाज़ा हम जगह-जगह भर रहे हैं। उन्हीं तारों को समर्पित कुछ लाइनें: मैं करती क्या हूँ ! सूरज से पहले देती घर को रोशनी हूँ, रात सोने पे फिर सूरज को जोहती हूँ। मेरे इंतज़ारों का सफ़र ख़त्म होता नहीं, पड़ावों की भी मंज़िल क्यों होती नहीं ! जगने-सोने की बेतुकी सब दरकारें हैं, इंद्रधनुषी प्रेम रंगों से ये सब हारे हैं। सबकी टूटी नींद के टुकड़े मैं चुनती, सिलकर जिन्हें अहर्निश मैं जलती। अपने सितारों पे अनदेखी की धूल चढ़ाती हूँ अपनों वाले पे रोज़ मन्नती फूल चढ़ाती हूँ। देह ज़वाब दे तो दे, पर मन करे मनमाना, सपनों पे बुझने को अड़...