दुनिया रात अंधेरी मैं फ़क़ीरा हो गया तुम धूप सुनहरी मैं हीरा हो गया।
दुनिया रात अंधेरी मैं फ़क़ीरा हो गया
तुम धूप सुनहरी मैं हीरा हो गया।
सागर जहान, ओझल किनारा हो गया
तुम काशी ज़हीन, मैं कबीरा हो गया।
दरिया को दिलासा, मिलने आएगा सागर
तुम मेरे भीतर हो कृष्ण, मैं मीरा हो गया।
नफ़रतों के बाज़ार में कशिश तमाम थी
तुम क़तरा इश्क़, मैं ज़ख़ीरा हो गया।
मुखौटों की महफ़िल में रौनक़ बहुत थी
सच का इक आइना सबको सरफ़िरा हो गया।
-काशी की क़लम
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