मैं करती क्या हूँ ! (कविता: गृहणी के मनोभाव)
मैं करती क्या हूँ !
सूरज से पहले देती घर को रोशनी हूँ,
रात सोने पे फिर सूरज को जोहती हूँ।
मेरे इंतज़ारों का सफ़र ख़त्म होता नहीं,
पड़ावों की भी मंज़िल क्यों होती नहीं !
जगने-सोने की बेतुकी सब दरकारें हैं,
इंद्रधनुषी प्रेम रंगों से ये सब हारे हैं।
सबकी टूटी नींद के टुकड़े मैं चुनती,
सिलकर जिन्हें अहर्निश मैं जलती।
अपने सितारों पे अनदेखी की धूल चढ़ाती हूँ
अपनों वाले पे रोज़ मन्नती फूल चढ़ाती हूँ।
देह ज़वाब दे तो दे, पर मन करे मनमाना,
सपनों पे बुझने को अड़ा रहे ये परवाना।
मेरी पलकों पे अपनों के सपनों के हार हैं,
काजल-मसखरा, सपने ही सोला सिंगार हैं।
किनारे सबके अलग, इस क़श्ती से पार है,
भगीरथी की अविचल नाव का क़रार है।
घर मेरा मयक़दा, थकान ही मेरी जाम है,
जब दर्द ही हो दवा, तो उफ़ का क्या काम है !
घर की मुस्कान का नशा रहता उफ़ान पर,
हाथ लगाए कोई इसे, भारी हर तूफ़ान पर।
रसोई के कुण्ड में उम्र आहुत होती है,
खाके धुआँ ताप पीकर तृप्ति होती है।
मगर ये समाज का कैसा देवता है !
उम्र ‘स्वाहा’ से भी नहीं मानता है।
यहाँ हाथ कटने के निशान तो आते-जाते हैं,
दाग़ जले के तो अब गिना भी नहीं पाते हैं।
समाज के ताने-बाने के ये जो के बाण हैं,
लेकर भी जीवन भर नहीं ले पाते प्राण हैं।
कामों के शब्दकोश में, घर वालों के कहाँ नाम हैं ?
सब करके भी, कुछ न करने के कैसे विधान हैं !
मैं तो निरी परछाई, बिन रोशनी वजूद कहाँ है ?
मेरी रोशनी सब देख सकें, ऐसी नज़रें कहाँ है !
महक फूलों को उनको मिलती कहाँ है !
‘क्या करती है’ जब पूछता जहाँ है ।
सबकी बनाने वाली, बता पाती नहीं है,
बेरंग रोशनाई की कहानी दिखती नहीं है।
Very nice
जवाब देंहटाएंMarmik satyr Kong prakasit karts kavita
जवाब देंहटाएंATI Sundar kavita
जवाब देंहटाएंuhbelievable rhyming
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