प्रधानमंत्री जी को खुला ख़त-हमें आपकी चिंता है।


माननीय जननायक, जनहृदय सम्राट, भारत माँ के प्रधान सेवक, जन-जन की जान, अंत्योदय के प्रणेता आदरणीय ओजस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, 

आपके चरण-कमलों में आपके एक नगण्य शुभचिंतक का नमन स्वीकार हो। 

इस महामारी के दौर में जैसे-तैसे बचते-बचाते आपकी कुशलता की मंगल कामना करता हूँ। लोग कहते हैं आप हैं, तो देश है। और मैं यह जनता हूँ कि देश से ही मैं भी हूँ। अर्थात मेरी कुशलता के तार आपके बने रहने से जुड़े हैं। इसलिए आपका स्वास्थ्य मेरे लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए महत्वपूर्ण है। वैसे मैं अपने आपको इस महामारी में स्वस्थ रखने के लिए भगीरथ यत्न किए जा रहा हूँ। और आपसे भी साष्टाङ्ग निवेदन करता हूँ कि आप भी अपना ध्यान रखकर हमपर महती आयुष-कृपा करें। 

बात १५ अगस्त २०२१ की है। विगत वर्षों से आपके लाल क़िले का ओजपूर्ण भाषण मैंने देखना कभी छोड़ा नहीं है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. बाजपेयी जी के बाद आप ही लाल क़िले से खिलते हैं। अपने बच्चों को भी सुनवाता हूँ। मेरी बड़ी बेटी आपको जानते-जानते १० साल की हो चली हैं। उसपर भी आपके 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', कन्या समृद्धि वाले उपकार हैं। छोटी बेटी अभी महज़ तीन साल की हैं। प्रयासरत हूँ कि अगले लालक़िले वाले भाषण तक वह भी आपको अच्छे-से जानने लगें। उधर मैं आपका भाषण सुनने में तल्लीन था। दूरदर्शन से बार-बार बोला जा रहा था कि यह पूरा आयोजन कोरोना प्रोटोकॉल के नियमों का अनुपालन करते हुए आयोजित हो रहा है। मेरा सीना भी फूले न समां रहा था। आख़िरकर महामारी हमारे अमृत महोत्सव के आड़े न आ सकी ; हमने अपने रास्ते स्वयं निकालना सीख लिया है; भारत आत्मनिर्भर होता दीख रहा था। दर्शक दीर्घा, टोक्यो ओलम्पिक के प्रतिभागी, मंत्रीगण, सभी लोग उचित दूरी और गर्मी में भी मास्क लगाकर बैठे थे। बड़ी तल्लीनता के साथ मैं आपको सुनता रहा। लेकिन मेरी बड़ी बेटी ने आपको सुनते-सुनते बीच में पूछा, "मोदी जी ने  मास्क क्यों नहीं लगाया?" एक-दो बार मैंने उन्हें शांत रहने का इशारा किया। मुझे भाषण पे ध्यान जो लगाना था। लेकिन वो चुप न रहीं। पूरे भाषण में मास्क मेरे कानों को बाधित करता रहा। जब भाषण ख़त्म हुआ, तो मैंने बेटी से कहा कि घण्टे भर कौन मास्क लगाकर बोलेगा। देखो मोदी जी अपनी जेब में मास्क रखे हैं, और भाषण ख़त्म होते ही तुरंत लगाएंगे। मुझे विश्वास, या यूँ कहें कि अति आत्मविश्वास था कि आप मास्क ज़रूर रखे होंगे। मैंने बोल तो दिया, लेकिन मैं सहमने लगा था। मुझे बेटी के हाथों आज फिर तर्क़-वितर्क में मात खाने का डर! मैं आपको मानव रूप में भगवान का अवतरण मानता हूँ, अतः आपकी अच्छाइयाँ ही मुझे नज़र आती हैं। अब प्रभु में दोष भला कौन ढूढ़े!




   अपने तर्क़ के तरकश में कुछ तीर भरने मैं टाइम-मशीन में थोड़ा-सा पीछे गया। और पहुँचा राजघाट पर! वहाँ पर आप गाँधी जी के अंतिम दो शब्दों 'हे राम!' के सामने शीश झुका रहे थे। उस वक़्त मेरी नज़रें कहीं और झुकी हुई थीं। आप जो कुछ भी पहन लेते हैं, कमल-सा खिल उठते हैं। वैसे तो किसी और की जेब पर मेरी नज़र नहीं रहती! ऊपर से एक फ़कीर की ज़ेब पर नज़र डालने के अपराध बोध! इस बोध का गला घोंटते हुए मैंने आपकी जेब पर नज़र डाली। जेब में मास्क नहीं मिलने पर भी मैंने आशा नहीं छोड़ी। मेरी उम्मीद आपकी लैंडरोवर पर जा टिकी। TV की आँख से जितना दिख पाया, मास्क के लिए लैंडरोवर में कोई लैंड  न था। तब मैं अपना बिना तीर का तरकश उतारकर नीचे रख कवच ढूंढने लगा। मैंने अपने बचाव में बताया कि देखो मोदी जी लोगों से दूर हैं, उनकी दाढ़ी में भला कौन मास्क सही बैठेगा। मगर इन सब से भी बात न बनी। इत्तफ़ाकन कोरिया भी अपना स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त को ही मना रहा था, तो यहाँ के राष्ट्रपति की उस दिन के कार्यक्रमों की तस्वीरों ने मेरे मुँह पे अलीगढ़ वाला ताला जड़ दिया। थोड़ी-बहुत जो कसर बची थी, वो आपने खिलाडियों के बीच बिना मास्क जाकर पूरी कर दी। बच्चे भविष्य हैं। उनको सवाल पूछने से तो मना नहीं कर सकता, क्योंकि सवाल और सवाल की गुणवत्ता ही गणतंत्र की गुणवत्ता है।  इसलिए दोनों बच्चों को कोरिया का भी झण्डा फहराने में व्यस्त कर TV बंद कर दिया। 



उधर कुछ दिनों पहले अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति ने लोगों के बीच में मास्क उतरते हुए बोला कि पूर्णतः टीका लगवाए लोगों को मास्क लगाने की आवश्यकता नहीं।  मास्क को आज़ादी का रोड़ा मानने वाली जनता को जो सन्देश मिला उसका नतीज़ा यह है कि प्रतिदिन लगभग दस हज़ार संक्रमण से आजकल दो लाख के आकड़े को छू रहा है। फलतः अब राष्ट्रपति जी दोबारा मास्क लगाकर ही लोगों के बीच मिल रहे हैं। कोरोना फ़ैलने के कई कारणों में से जो सबसे बड़ा है, वो है सजगता। ग़लत सन्देश जाने पर लोग ढीले पड़ गए...और कोरोना ने अपना वज़ूद टाइट कर लिया। 

कई दिनों तक बच्चे का सवाल मुझे उलझता रहा। सोचा आपसे ही पूछ लूँ, क्या पता उस दिन कोई मजबूरी रही हो, जिसका आकलन मुझ बुद्धू से परे हो। फिर असल में तो यह सवाल बच्चे का है, बच्चे भगवान का रूप हैं, उनका पूछना के हक़ बनता है। आपका कहा-अनकहा सारा सन्देश लोग मानते हैं। आप दिया जलाने के लिए बोले, भारत में महामारी में भी दीवाली हो गई; आप घण्टी बजाने ले लिए बोले, भारत शंखनाद से गूँज उठा; आप गमछा लपेटकर लोगों को सम्बोधित किए, लोग कुछ नहीं तो पत्ते लपेटकर आपका साथ दिए। फिर आपके मास्क न लगाने का जो ग़लत सन्देश लोग लगाएँगे इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। कुछ महीने पहले भारत माँ के ज़ख्म अभी भरे नहीं हैं। इसलिए आपका बिना मास्क लोगों के बीच में जाना मेरी बेटी के साथ-साथ अब मुझे भी आपकी शुभचिंता करने पर विवश कर रहा है। ख़ैर यह सवाल नहीं, आपकी शुभचिंता है। आप स्वस्थ रहें और अच्छे कार्य करते रहें। 

आपका शुभचिंतक 

-नवीन

पूरब का दीप वाले देश से

साभार: United States Covid Data

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