दावत पे दीया (लघुकथा)

  ब्रम्हाण्ड ने एक रात सारे प्रकाश देने वालों को दावत का न्यौता दिया। सूरज ने दावत में अकेले पड़ जाने की वजह से जाना उचित न समझा। और अगर वो दावत खाने चला जाता, तो उसका प्रकाश का काम कौन देखता? चंद्रमा, धरती का और दूसरे ग्रहों के भी पहुँचे। सितारे झुण्ड-के-झुण्ड गए। पृथ्वी ने अपनी रश्मि पुंजों को भी भेजा, जिनकी अगुआई पर्यावरण की रक्षा के भार से थके हुए LED और CFL बल्बों ने की।  ट्यूबलाइट की पूछ किसी ज़माने में काफ़ी हुआ करती थी। उसकी जगह इन दोनों अगुओं ने छीन ली। ख़ैर संतोष बस इतना था कि अगुआई की कुर्सी चलायमान थी-आज उनकी, तो कल पर्यावरण मित्रता में भले किसी और की।  १०० वाट की सुनहरी रोशनी वाले, पर्वावरण पे बोझ बने चुके बल्ब भी बिना पृथ्वी के कहे ही तैयार हो चले। शादी-ब्याह में जगमग करने वाली झिलमिल लाइटें भी फुदक-फुदककर शामिल हुईं। पृथ्वी ने कष्टकारी हैलोजन बल्बों को जाने से सख़्त मना कर रखा था। लेकिन दावत का नाम सुनते, वे भी दबे पाँव काफ़िले में हो लिये। आख़िरकार कड़कड़ाती सर्दी में उनकी भी कमर टूट जाती है। सब चले गए, लेकिन पृथ्वी को अपनी पुरातन मित्र नज़र नहीं आ रहा था।। दीया, अँधेरे से तो लड़ता बराबर है, लेकिन उसकी लड़ाई को उसका धर्म समझा जाता है। उसके जलने के काम को श्रेय उतना ही मिल पाता है , जितना गृह स्वामिनियों को रसोई में चलने का। उसको अपनी यह ज़मीनी हक़ीक़त पता थी। उसका प्रकाश ज़रूरत होता है, मगर वो दूसरों जैसा रहीस और आधुनिकता का प्रतीक नहीं था। वो जब धरती पर ही उपेक्षित था, तो दावत में तो प्रकाश के महारथी आने वाले थे। वे तो दीये को अपने पैरों की धूर समझते। आख़िरकार वो पृथ्वी को  मना नहीं कर सका, दावत के लिए मान गया। 

   ब्रम्हाण्ड ने सभी प्रकाश-कारकों का स्वागत किया, और अंधेरे से लगातार बचाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। बुफे स्टाइल में भोजन था। बुफे: आपने, अपना, अपने से, अपने लिए लिया वाली पद्यति! चन्द्रमा लोग अपना झुण्ड बनाकर एक लाइन में लगे, गप-सड़ाके करते हुए भोजन में रम गए। पृथ्वी वाले ने तो बोला, "दोस्तों, धरती के लिखने वालों से मैं तो परेशान हूँ, उनको मुझमें पता नहीं क्या-क्या दीख पड़ता है। उतना तो स्वयं मुझे नहीं दिखाई देता! यदि ऐसे ही चलता रहा, तो एक-न-एक दिन बाइपोलर-ट्राई पोलर के हाथों ज़रूर पकड़ा जाऊँगा। 

  तारों की तादात बड़ी थी। हर लाइन में उनका बोलबाला था। कॉलर को उठाकर सारे ऐसे घूम रहे थे, जैसे वही सूरज हों। बड़े न जाएँ, तो भीड़ में छोटे ही अपने आपको बॉस समझ बैठते हैं। सब हाथों में प्लेट पकड़कर डिश-पे-डिश (व्यंजन) पूरे एटिकेट के साथ जमाए जा रहे थे। 

  धरती वाले किसी से नहीं सट रहे थे। क्योंकि वे सब स्वतः जलायमान नहीं थे, प्रकाश करने के लिए पराश्रित थे। उनमें भी बिजली वालों ने अपनी गोल बनाकर बेचारी दीये को किनारे कर दिया। वो एकदम डर में था। दीया, राजा भोज में गंगू तेली-सा था। किंतु आज रात अपना तेल भी न लेकर आया था। अब आ गया था, तो दावत तो उठानी ही थी। पेट का सवाल था! प्लेट उठाकर चला, लाइन में आगे-पीछे से सितारों से घिररा। दीये ने चम्मच, फ़ोर्क, टिश्यू को देखा, पर उपयोगिता पल्ले न थी, तो उनसे कन्नी काट लिया। उसको सलाद तो समझ में आया, लेकिन प्याज़ बहुतेरों अनजानों के बीच दबा होने की वजह से दूर से ही सलाम कर निकल गया। वो खिसकती हुई आगे बढ़ा। उसको अपनेपन जैसा कोई खाना नहीं मिल रहा था। तभी उसकी नजर दाल-भात पर पड़ी। अनजान जगह में उसको दाल-भात का तो साथ मिला! अंदर से भावुक हो वह झट से टूट पड़ा। सितारों की महफ़िल में दीया अलग दीख रहा था। पीछे से एक तारे ने हँसते हुए, 

"अरे! तुम लोग ये बिरियानी छोड़, घास-फूस पर जीते हो!!"

दीया समझ नहीं पाया कि बोले, कि खाना पाए। इतने में अगले वाले सितारे ने एक और क़सीदा कसा, 

"ये सब झुलमुलाये-से जलते हैं। बेचारे अपनी दर तक को तो उजाला नहीं कर पाते!"

दीये का चीरहरण शुरु हो चला, 

"पृथ्वी वालों को तो हम तारे बड़े रास आते हैं। हमें देख बड़े ख़ुश रहते हैं सब। प्यार-मोहबात की बातें हमीं से सीखते हैं।"

"हम तो इनकी फ़िल्मों  के गानों में भी छाए रहते हैं...!"

दीये के हलक़ से एक भी निवाला उतर नहीं पा रहा था। दाल-भात दीये के हाथों की राह देख रहा था। दीये ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझा। आख़िरकार 'चिराग़ तले अंधरे' वाली बात हो या फिर गीतों वाली, सच्चाई ही तो थी। देखते-ही-देखते दूसरी क़तारों में लगे सितारों में दीये की बात फैल गई। सारे अपनी तस्तरियाँ लेकर दीये की नंगी दशा को खरोचने आ गए। दीया चारों ओर से सितारों से घिर गया। उसने दूर खड़े धरती वालों की ओर भी उचककर देखना चाहा। लेकिन वे दीये के तमाशे को देख ठहाके लगाए जा रहे थे। उपहास सच से शुरु हुआ, दीया सहता रहा। चुप्पी का सह पाकर उपहास ने झूठ की पगडण्डी पकड़ ली। एक सितारे ने कहा, 

"ये अपने काम से लज्जित है...मनाते हैं कि धरती वाले इसकी जान बख़्श दें। रिटायर होना चाहते हैं।"

इस झूठे ने दीये को ठेस इसलिए पहुँचाया क्योंकि दीया अपने काम का पुजारी था। उसने दबी आवाज़ में ही बोला, 

"पेट भरे हुए आपको सजावट में देखते हैं, उजियारे के लिए उनकी नज़रें इस ग़रीब को ही हेरती हैं।"

सौ सोनार के बाद एक लोहार की थी। शर्मसार सितारों ने दीये का लोहा मान लिया। उनको उनकी सीमा भी पता चली। फिर दीये को दिया रेड कार्पेट। 

उन सितारों का क्या फ़ायदा है, 

रात सजाने का क्या क़ायदा है ?

बन लौ जलो, छाँटो थोड़ा अंधेरा,

किसी इंतज़ार को मिला दो सबेरा।

 

आपकी समीक्षा की राह में... 

आपका 

***** 

अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी, तो गूँज पुस्तक बेहद पसंद आएगी:
गूँज दबते स्वरों की (कहानी संग्रह) । भारतीय ज्ञानपीठ ।

Goonj is collection of Hindi short stories, published by Bharatiya Jnanpith in 2021.

 



टिप्पणियाँ

  1. आपकी कल्पना का कायल हूं मैं। कहानी के किरदारों का सामाजिक विन्यास सुखद अहसास देता है। निरंतर प्रयास करिए भाई। मुझे गर्व है आपकी बौद्धधिकता पर।।।

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  2. आपके पास वास्तविक जीवन में पात्रों को व्यक्त करने का एक शानदार तरीका है|मैं कामना करता हूं कि ऐसी अद्भुत चीजें लिखने में आपकी सफल यात्रा हो|

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    1. सादर प्रणाम भूषण जी,
      आपकी शुभकामनाओं के सहारे प्रयास जारी रहेगा।

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  3. This essay has just not caught our imagination but also encourage us to fill it with color we wanted to . I could see it from the light of modern vs antique, in-trends vs out of date to even affluent vs impoverished and what not. These contrasting entities do exist in society and everyone of them has some utility. This is a sarcasm to those who consider this as a parameter of success and development. The more holistic view would rather be to understand the significance of existence of each entity at some point in time and see if that was not great in itself.
    Such a beautiful message in a very subtle way indeed needs some sort of mastery.
    The way you arrange the premises is very contemporary yet deeply rooted to our values. It’s definitely is a great piece of …….art and I do not have the word in appreciation to match this work so please don’t mind my gawking comments.

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  4. अनूठी प्रतिभा का एक और अनोखा प्रदर्शन|
    अद्भुत है आपकी प्रतिभा|

    साधुवाद स्वीकार करें|

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