श्री विवेकानंद सर जी को सादर वंदन।






 जमे रहो कर्तव्य कुरुक्षेत्र में, कम्पित क़दमों से जग हिला कहाँ है?

थामो साँसें कठोर डगर में, संकल्प जहाँ, सब मिला वहाँ है।


उम्मीदों पे भारी पड़ने का ही जीवन नाम है,

इनसे अपनी आवृत्ति मिलाओ, ये दर्शन की खान हैं।


राजर्षि वृक्ष की इन शाखा पे, ऋषि-संस्कारों के फल लगे,

धन्य किए राजा की बग़िया, बाग़बान की बाहों के बल बने।


यह शाखा अब बन गई है बग़िया, भले ही दूसरे जहान हैं,

नव धरा नवल स्वप्न बोने को, काफ़ी ये कल्पतरु महान हैं।


प्रज्ज्वलित रहे ज्ञान का, आशा का दीपक अविरल अनंत,

अंधेरी राह पे जोह रहे हैं जिनको, वही प्रकाश गुरु विवेकानंद।

-आपका शिष्य

नवीन


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मशीनें संवेदनशीलता सीख रही हैं, पर मानव?

हुण्डी (कहानी)

कला समाज की आत्मा है, जीवन्त समाज के लिए आत्मा का होना आवश्यक है।