आदरणीय श्री सुभाष सिंह सर जी का वंदन

 



ये भोर में जब ललकार भरें, जीवन-सुबह में रणभेरी बजती है,

इनकी एक पुकार पे, करतल ध्वनि बिजली-सी कड़कती है।


जो मधुर मुस्कान का इशारा हो जाए, संध्या शांत होकर धरा धर ले,

संध्या हाल में मंत्र मूसलाधार हो जाए, रात्रि भी मंत्र से मन भर ले।


घर से दूर एक घर देते, और देते पिता का प्यार,

भविष्य सँवारते बच्चों का, नज़रें लेते सबकी उतार।


भविष्य गढ़ने बच्चों का, अपनाते हर हथकण्डे हैं,

प्यार से आकार पकड़ लो वरना, गुरु-कुम्हार के डंडे हैं। 


हर मुश्क़िल में साथ ये रहते, बच्चों की छतरी बनकर,

हाशिए पर भी हौंसला भरते, ऊर्जा की गठरी बनकर।


श्रम कठोर और धीरज रखने की, स्फटिक माला जपवाते हैं,

जिन मुख से सुभाषित ही होता, उन गुरु सुभाष को सिर नवाते हैं।

सादर प्रणाम

-आपका शिष्य

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