डॉ. धीरेंद्र सिंह को समर्पित कविता
कांति ढूँढना हो, झाँको इन संत की मूर्ति में,
नैसर्गिक ओज की धारा है, सर की स्फूर्ति में।
चेहरे के पीछे बसते धवल कीर्ति के पुंज हैं,
ब्रम्हाण्ड चमकाता जो सूरज, उन्हीं रसायनों के कुंज हैं।
किताबों में ही मिलता नहीं दया-दान का आचरण है,
धरती पे जीता-जागता धीरेंद्र सर का उदाहरण है।
कथनी नहीं, करनी ही बतलाती चरित्र है,
शीशे-सा पारदर्शी निर्मल यह व्यक्तित्व है।
रोम-रोम में ईमान बसा, हर रंग परमार्थी का है,
सबको भरती ख़ुद भी तरती, स्वभाव भागीरथी का है।
यदि जीवन कुम्हलाया हो, छिड़क लो मधुर मुस्कान ज़रा,
सूखे पत्ते भी जीवंत हो उठते, सानिध्य अजर सोम भरा।
जिनका जीवन कर्म-धर्म-मर्म का दर्पण है,
धीरेंद्र गुरुवर को कविता-पुष्प का अर्पण है।
आपके द्वारा बनाए गए हज़ारों शिष्यों में से एक...
Very nice poetry. Dhirendra is exactly what it is presented in the poetry.
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