कविता: हो या नहीं?
ज़िंदगी ख़ुद शर्त जी सको,
तो ज़िंदा हो तुम।
गले में बंधन पड़ सकता नहीं,
अगर शेर दिल परिंदा हो तुम।
क्या करोगे ज़माने की नज़रों में उठकर,
जब शीशे से शर्मिंदा हो तुम।
जियो, नहीं कि दिलों में बस जाना है,
जियो, यूँ कि ज्वाला बन बाशिंदा हो तुम।
याद रखो आदमी आँख मूँदी भेड़ नहीं,
काल पे अपनी लकीर बनाओ, चुनिंदा हो तुम।
मुण्डी हिलाना हर सेहत को अच्छा है,
कभी-कभार रीढ़ भी आज़माओ, तो ज़िंदा हो तुम।
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