मानवता के मालवीय: अजित यादव


 सादर प्रणाम,

मैं आपका नवीन।

यह लेखन हमारे मित्र के कर्मों के सामने बौना है। हमारे मित्र अजित यादव जी ने हाल ही में यह सिद्ध कर दिया कि किसी की मदद करने के लिए धन का होना ही एक मात्र साधन नहीं है।

अजित जी के सहकर्मी के पिता जी को ऐसी बीमारी थी, जिसके इलाज़ के लिए उनके मित्र ने अपना घर तक बेचना चाहा। घर न बिक पाने पर अजित ने हाथ पर हाथ न धरे रखा। उन्होंने आधुनिक तकनिकी साधनों का सदुपयोग करते हुए लोगों से मदद देने का आग्रह किया। फल स्वरूप लगभग ७०० नेक दिल लोगों ने अजित के पुण्य काम में उनका हाथ थामा। लगभग रु १५ लाख इन्होने इकट्ठे किए। अभी भी जंग जारी है। 

'इसमें मेरा क्या है', की दीवार फाँदकर,

कभी किसी के बेमतलब भी काम आएँ।

दानवेंद्र बलि न बन पाएँ, तो क्या!

कम-से-कम कर्ण बलिदानी बन जाएँ।

आपके इस मानवीय प्रयास पर हम सभी गर्व की अनुभूति करते हैं। साथ ही हम आशा करते हैं कि आपका प्रयास प्रेरणा स्त्रोत बनेगा। आप जैसे लोगों की मानवता को सख़्त ज़रूरत है। हम काशी की कलम ओर से आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ देते हैं।








टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मशीनें संवेदनशीलता सीख रही हैं, पर मानव?

हुण्डी (कहानी)

कला समाज की आत्मा है, जीवन्त समाज के लिए आत्मा का होना आवश्यक है।