मोहम्मदपुर

नवरात्रि में हर जगह होते जगराते। जगह-जगह लगे पण्डाल। उसमें प्रतिष्ठित देवी की प्रतिमाएँ। श्रद्धा में सराबोर जगराते में स्वयं को शून्य में विलीन करने जैसी अनुभूति करते भक्तगण। मैं भी अपने परिवार के साथ शाम को घर के पास वाले पण्डाल में दुर्गा माँ को अपने हिस्से का समर्पण चढ़ाकर वापस आया था। खाना खाकर सुबह की योजना बनाने में मैं और मेरी धर्मपत्नी जुटे थे। आस-पास के पण्डालों में चल रहे भक्ति गीत अभी भी हमारे घर के अंदर आकर हमें भक्ति भाव में डुबाए हुए थे। तभी मेरा बेटा करन अपने कमरे के अंदर से ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाने लगा, "मम्मी, सुन रही हो? ... डैडी, कहाँ हो ? मेरे कमरे में आओ। " हम दोनों लोग सेकण्ड की सुई से भी तेज़ उनके कमरे में पहुँचे। सब सामान्य था। करन ध्यान केंद्रित कर रहे थे, लेकिन अपनी क़िताब में नहीं, कहीं और। क्या बात है, यह पूछने पर, करन ने बोला, "मम्मी, यह जो पियानो जैसी आवाज़ सुनाई दे रही है, कहाँ से आ रही है? बीच-बीच में कुछ लोग आपस में डायलॉगबाज़ी भी कर रहे हैं। वे गाने भी गा रहे हैं, लेकिन जागरण से...