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 सादर प्रणाम,

मैं नवीन, 2008 प्लास्टिक। 

'सकुशल पूर्वक रहते हुए आशा करता हूँ कि आप सभी कुशल पूर्वक होंगे...'

जी हाँ ! बात उस दौर की है, जब लोग अंतर्देशीय पत्र में ऊपर की लाइनें लिखकर टालते रहते थे। वे  NOKIA  के हथौड़े  प्रूफ़ फ़ोन से स्मार्ट फ़ोन की तरफ जा रहे थे। इंटरनेट फैल रहा था, मगर कछुए की मुंडी उसके कवच से अधिक बाहर नहीं निकल पा रही थी। इंटरनेट का भाव?  हीरा तो नहीं, मगर सोने से तनिक कम न था। कलम क़िस्मत का साथ पाकर कुछ कमाल कर गई थी। मुझे आगामी कमाल का अनुमान था, इसलिए HBTI  में  पीठ थपथपवाने नवम्बर 2008 के ALUMNI MEET में जाने वाला था। साथ ही मुझे एक भरोसा और था -यह कमाल HBTI से अगर बहुत बाहर निकलना चाहेगा, तो भी पत्थर कॉलेज के पत्थरों की सीमा को लाँघ न पाएगा। अभी मैंने कॉर्पोरेट जगत के गर्भ में ५ महीने बिताया था। क़दमों में कैल्शियम की मात्रा को सोखकर मैं चलने का प्रयास कर रहा था। UPTU के दीक्षांत समारोह में मेरे कुछ मित्र जा रहे थे, मेरा मन न हुआ। नहीं, शायद मन न हो सका। 

   एकदिन iNEXT की पत्रकार महोदया का फ़ोन आया। उन्होंने बताया कि मुझे UPTU लखनऊ के दीक्षांत समारोह में स्वर्ण पदक मिला, और मैं वहाँ लेने भी न पहुँचा। पत्रकारिता में उनका तीखापन, और तेज़ हो गई मेरी धड़कन। आश्चर्य में था, कमाल नवाबगंज से दूर नवाबी शहर लखनऊ तक जा पहुँचा था। पत्रकार महोदया मेरा नंबर पाने के लिए पहले HBTI गईं, मेरे घर का नंबर बड़ी मशक्क़त से पाईं। उससे अधिक पापड़ बेलने पड़े मेरा नंबर पाने के लिए।

सादर प्रणाम 

आपका नवीन 



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