नारी क्या तुम पूजा हो?
कल तक जो साबुत थी।
ज़रूरत न पड़ी ताबूत की।
बेटी से बन गई जो राख थी।
ढेर नहीं, शक्ति की ख़ाक थी।
नव मास के भ्रूण से बरी हुई।
गिद्धों के भय से पिंजरे में क़ैद हुई।
कभी दहेज के दाह में दहती।
कभी बलात्कार में चित्कारती।
नारी की पूजा होती थी जहाँ कभी।
प्रसाद उसी का चढ़ रहा है वहाँ अभी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें