श्री अरविंद सिंह सर को नमन
जो कनइल को भी कमल बना दें
पत्थर पर भी दूब जमवाँ दें।
डूबते हुओं को भी उतिरवा दें,
वो गुरु अरविंद हैं।
जो निराशा में भी प्राण डाल दें,
अचलों को भी धावक बना दें,
दिशाओं को भी दिशा दिखा दें,
वो गुरु अरविंद हैं।
महानों का निर्माण करते हैं।
शून्यता से निर्वाण देते हैं।
फिर भी स्वयं शून्य बतलाते हैं।
हीरे ख़ुद को हीरा कब कहलाते हैं?
जो भी माटी इनके चाक पे आ जाती है,
माटी स्वयं को मानव बनता पाती है।
गाँव से कोई फावड़ा-कुदाल जब आता है,
उन पारस-पैरों को छूकर सोना बन जाता है।
है भाषा इनकी सरल इतनी,
अनपढ़ को भी समझ आय जितनी।
घर चीनी नहीं मँगाते होंगे।
मीठे बोल से ही काम चलाते होंगे।
जो मूरत गढ़ें, वो मूर्तिकार हैं।
जो नियत गढ़े,वो नियतिकार हैं।
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