फूल एक गुलाब का, अटल जी के लिये ।


शब्दकोश रोये होंगे, उनकी माला पिरोने वाला तार जो टूट गया।
माँ सरस्वती भी शान्त होंगी, उनका ध्रुव उपासक जो चिर मौन हो गया ।
बिलख गए होंगे पुष्प उनसे कमल पद से लिपट के,
और बोले होंगे की तुम ज़िंदा थे तभी हम सचेत थे,
तुम्हारे पार्थिव पर तो हम शुष्क-निर्जीव हो गये।
फट गयी होगी तिरंगे की छाती,
लिपट के अपने सपूत से।
इतराती थी जिस लाल के सलामी पे,
वो लाल सो गया अब भारत माँ का आँचल ओढ़ के ।
यम भी पछतायें होंगे आपको ले जाने में,
पग डगमगायें होंगे आपके साथ वैकुण्ठ जाने में।
वैकुण्ठ भी दहला होगा, ये कौन आ गया।
जिसके ना होने से भारत भू पे तम छा गया।
अग्नि भी धधक उठी होगी , तपस्वी को तपा के।
मन ही मन पिघली होगी आपको भस्म में मिलाके।

नयन नम, कण्ठ कुंठित, क्षुब्द हृदय है की कोई अपना चला गया।
अटल जी को शृद्द्हंजली।

-नवीन, 2018 अगस्त 17.

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