कोरोना योद्धा
भय भयंकर भरा पड़ा था।
हर जन पर तन से भाग खड़ा था।
जब वो छुट्टा घूम रहा था।
क़हर के मद में झूम रहा था।
तब कर्ण ने कवच-कुंडल उठाया था।
बन पृथ्वीराज मैंने शब्द भेदी चलाया था।
जब वो मानवता को ललकार रहा था।
अखाड़े में निर्द्वंद्व फुफकार रहा था।
तब मैंने यमदूतों से हाथ मिलाया था।
मैंने यमराज को भी संजीवनी पिलाया था।
क्या मज़ाल वो किसी को छूले!
सफ़ेद वर्दी देख वो रास्ता भूले!
धन्वन्तरि बहते हैं मेरी रगों में।
दधीचि अस्थियाँ पहनी हैं मैंने नगों में।
**********************
मैं देवदूतों की काया हूँ।
मैं सब मरीज़ों की छाया हूँ।
भगवान का मैं शस्त्र हूँ।
उस देवात्मा की मैं देह-वस्त्र हूँ।
मदर टेरेसा की सौगंध मैं खाती हूँ।
जान की बाज़ी लगाकर भी मैं जान बचाती हूँ।
*****************************
मैं उन औज़ारों को चमकाता हूँ।
काट सके सब घावों को, मैं वो धार लगाता हूँ।
मैं गुमनामी में बसता हूँ।
तिरस्कार को पीता हूँ ।
मैं तन की, मन की गंद हटाता हूँ।
मैं पूरे वतन की मैल उठाता हूँ।
मैं कोने-कोने के कचरों का काल हूँ।
सफ़ाई का पुजारी, मैं गांधी का लाल हूँ।
************************
सफ़ेद वर्दी को मिलने से पहले, मैं तुमको मिल जाता हूँ।
मैं तो बुरा हूँ, पर हैं डंडे भले।मैं ख़ाकी वाला कहलाता हूँ।
सबके अंदर मैं भय भरता हूँ, लेकिन मैं नहीं अभिमानी हूँ।
खोल के देखो मेरे भीतर, मैं तो नारियल-पानी हूँ।
**************************
मैं शस्त्र नहीं चला सकता तो क्या? मैंने ढाल उठाना जाना है।
कोरोना का मैं भी वीर योद्धा हूँ। मैंने मास्क लगाना जाना है।
************************
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें