कोरोना योद्धा

भय भयंकर भरा पड़ा था। हर जन पर तन से भाग खड़ा था। जब वो छुट्टा घूम रहा था। क़हर के मद में झूम रहा था। तब कर्ण ने कवच - कुंडल उठाया था। बन पृथ्वीराज मैंने शब्द भेदी चलाया था। जब वो मानवता को ललकार रहा था। अखाड़े में निर्द्वंद्व फुफकार रहा था। तब मैंने यमदूतों से हाथ मिलाया था। मैंने यमराज को भी संजीवनी पिलाया था। क्या मज़ाल वो किसी को छूले! सफ़ेद वर्दी देख वो रास्ता भूले! धन्वन्तरि बहते हैं मेरी रगों में। दधीचि अस्थियाँ पहनी हैं मैंने नगों में। ********************** मैं ...