वंश

  कुसुम २ सुन्दर, फूल जैसी बेटियोँ को जन्म दे चुकी थी। वो अपने परिवार की इकलौती बहू थी। लड़कियों से कहाँ किसी की तृप्ति होती है ? पूर्वज रूठे रहते हैं। वंश नहीं चलता है। मरने के बाद अपने पूर्वर्जों को क्या मुँह दिखाते कुसुम के ससुर जी ?  कुसुम की सास भी अपनी पति को इस विषय में पूरा समर्थन करती थीं। 


ससुर जी ने तो बस अप्रत्यक्ष रूप से इच्छा व्यक्त की थी " काश अगली बार बहू को एक लड़का हो जाता, ऊपर जाकर शर्मिंदा न होना पड़ता। "

अपने पति की मानो आख़िरी इच्छा हो, बस ऐसा समझकर कुसुम की सास ने कमर कस ली। "देखना, अगली बार लड़का ही होगा "

उनकी यह बात संकल्प कम और ज़िद बन गयी थी। 

उनको अपने मायके के पास वाले गाँव का मंदिर याद था। बहुत पहले मंदिर पूरे गाँव के बीचो-बीच हुआ करता था। लेकिन प्रकृति का कहर था, धीरे-धीरे गाँव में एक भी परिवार न बचा। गाँव के सारे घरों में दिया जलाने वाला कोई नहीं बचा था।  सारे घर खण्डहर होते चले गये । मंदिर के पुजारी को छोड़कर पूरे गाँव में और कोई नहीं रहता था। लोगों की ऐसी मान्यता थी कि पुजारी बाबा का आशीर्वाद मिलने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इसी पुत्रमोह में कुसुम की सास कुसुम से एक दिन बोलीं -

"अब दूसरी बच्ची एक साल की हो गयी है, इस बार पक्का लड़का ही होगा। सोच रही हो तीसरे बच्चे के लिए कि नहीं ? " 

कुसुम -"माता जी, दो बच्चे हैं न, इनसे आपका दिल नहीं बहलता है ? लड़के के पीछे क्यों पड़ी हैं? हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है कि तीसरे बच्चे की परवरिश कर सकें। "

उसकी सास के ऊपर कोई फर्क न पड़ता देखकर कुसुम अपनी दलीलें जारी रखी । 

"लड़कियाँ भी तो आसमान में उड़ रहीं हैं।  इन्हे ही हम पढ़ाएंगे। ये भी हमारे कुल का नाम रौशन करेंगी ।  "

कुसुम की सासु माँ ने उसकी बातों को एकदम नज़र अंदाज़ कर दिया। वो कुसुम को मंदिर के पुजारी के पास ले जाने का उपाय ढूंढने में खोई थीं।  उन्होंने अपने बेटे को पटाने का उपाय बनाया। 

कुसुम के पति, भैरव, अपनी माँ की बातों को बड़े प्यार से मान लेता था। पिता के सामने एक शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। वो सही कहते या ग़लत, कभी भी भैरव मुँह नहीं खोलता था। 

भैरव की माँ ने नाती पाने और पीढ़ी चलाने का पूरा प्रयोजन भैरव को बता दिया। भैरव माँ का भक्त था, उसने माँ का प्रस्ताव बिना किसी आनाकानी के मान लिया।

भैरव, कुसुम और कुसुम की सासु माँ उस मंदिर पर पहुँचे। 

कुसुम ने मंदिर में माँ दुर्गा का चरण छूआ।  तभी कुसुम के कानों में एक मोटी, फटी हुई आवाज़ आयी, जैसे कोई जल रहा हो , अभी उसका दम घुट रहा हो और वो अपने अंतिम शब्द बोलने का प्रयास कर रहा हो-

"भाग जाओ ......"

कुसुम के रोंगटे खड़े हो गए। मंदिर तो देवी का स्थान होता है, फिर यहाँ पर मुझे डर कैसा। वह अपने को सामान्य करती है और मंदिर से बाहर निकलकती है।  तभी कुसुम की नज़र पुजारी पर पड़ती है, उसके पति और सासु माँ पुजारी के चरणों में बैठे थे। इतनी तन्मयता और समर्पण के साथ सासु माँ कभी भी अपने पति के साथ नहीं बैठे देखी थी। मंदिर से वापस आते समय पुजारी कुसुम के कमर में एक जंतर बाँधते हैं और प्रसाद स्वरूप लड्डू देते हैं।

वो आवाज उसको प्रतिध्वनि की तरह हर तरफ सुनाई देती रही ।

" फिर मत आना ..... " 

दो महीने बाद कुसुम को पता चलता है कि वो पेट से है। यह ख़बर पूरे घर में उत्सव मनाने का कारण थी। लोगों ने मान लिया था कि अब लड़का ही होगा। कुसुम थोड़ी डर गयी थी।  अगर लड़की हुई तो ? इसके बाद की संभावनाओं और उसकी दुर्दशा का भय उसको दिन पर दिन सताये जा रहा था।

समय-समय पर उस मंदिर पर वहीं तीनों लोग पुजारी से मिलने जाया करते थे। पुजारी ने लड़का होने की गारंटी दी थी।  उन्होंने बोला कि प्रसव देवी माँ के प्राँगण में ही होना चाहिए। तभी कार्य संपन्न होगा । वहीं आवाजें कुसुम के कानों में बार-बार गूँजती थीं ।

"....पछताओगी ......" 

अच्छी ख़बर के इंतजार का समय जल्द कट जाता है। प्रसव की पीड़ा शुरू हो गयी। झट से तीनों लोग मंदिर पहुँचे। प्रसव में अभी कुछ घण्टे ही बाकी बचे थे। पुजारी ने दुर्गा माँ के मंदिर में अपना पूरा कर्मकाण्ड समाप्त किया और यजमान को पुत्र की प्राप्ति ही होगी, ऐसा दुर्गा माता से कामना की । 

कुसुम की सासु माँ एकदम उत्तेजित थीं, कब वो अपने पोते को गले लगा लेतीं। एक-एक पल बरसों के जैसा बीत रहा था । उनको कुसुम की कराहों और चीखों से कोई मतलब नहीं था। बहुत स्वार्थी हो चुकी थीं। एकदम पत्थर की मूरत के जैसी। 

बच्चा दुनियाँ का प्रकाश देखा।  कुसुम प्रसव के बाद बेहोंश हो गयी। 

लेकिन ये क्या ? ये क्या था , किसकी क़यामत थी ?

लड़का नहीं था, लड़की थी। एकदम फूल जैसी , मुस्कुराती हुई। जैसे अपने दादी से बोलने का प्रयास कर रही हो, "चिंता मत करो, मैं हूँ ना "

अब पुजारी सन्न रह गए। अब क्या ज़वाब देते ? लड़की कैसे हो गयी? उनकी गारण्टी का क्या हुआ ?

तभी उन्होंने एक और चाल चली, बोले-

"दुर्गा माँ ने बोला है कि और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । इस लड़की की बलि दे दो तो अगली बार लड़का अवश्य होगा।"

"कुल का वंश यदि बलि से आये तो वो यशश्वी और बलवान होता है । " 

यह सुनकर भैरव ताण्डव करने पर उतर आया। उसकी माँ ने उसको मना लिया। वो बेवश हो कर वहाँ से चला गया।  कुसुम वहीं पड़ी थी, एकदम बेहोश। उसकी फूल सी बच्ची के साथ होने वाले दर्दनाक काण्ड से एकदम अनभिज्ञ। 

पुजारी ने मंदिर के बाहर का हवन कुण्ड जलाया। ये क्या ? अँधेरा कैसा ? सूरज कहाँ गया ? अँधेरा कैसा ?

एकाएक मौसम का बदलना , तूफ़ान का आना बादलों का घिरना और बिजली का तड़कना किसी अनहोनी का द्योतक था। तूफ़ान जैसे हवन कुण्ड की आग को बुझाने का प्रयास कर रहा हो। मूसलाधार बारिश हो रही थी ।  बारिश की झपटें जैसे आग को बुझाना चाहती हों। प्रकृति अपने वरदान स्वरूप जीवन को बचाने का पुरजोर यत्न कर रही हो। 

किसी अनिष्ट की आशंका को आँकते हुए पुजारी जल्दी से बच्ची को हवन कुण्ड में डालने ले जाते हैं। कुसुम की सासु माँ कुसुम के पास ही रूक गयीं। उनको सोचने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था । उनका निर्णय सही है या ग़लत ?

तभी हवन कुण्ड को घेरे हुए बीसों लड़कियाँ बैठी रहती हैं। सब मुस्कुराती हुईं , बाल ऐसे जैसे कि अभी माँ के गर्भ से निकली हों । जैसे खुद दुर्गा माँ छोटी बच्चियों के रूप में आयी हों। सबकी आँखों में गुस्सा था। पुजारी को पता था कि ये कौन हैं ?

सबने एक साथ बोला-

"मान जा , हमें भी जीने दे "

"और कितनों को मारेगा ?"

"अब तेरा समय आ गया है।"

उन सबने बच्ची को पुजारी से छीन लिया और पुजारी  को हवन कुण्ड में डाल दिया। 

कुसुम जब होश सम्हालती है तो नन्ही परी को अपने पास लेटा देख बड़ी राहत की साँस लेती है । सामने दुर्गा माँ को प्रणाम करती है और कहती है कि माँ की वज़ह से उसका डर डर ही रह गया । लड़की पैदा हुई फिर भी सासु माँ ने कुछ नहीं बोला । आख़िर सासु माँ कैसे बोलतीं  ? पुजारी को अपने सामने ज़िंदा जलते देखीं थीं । लड़के का वादा करने वाले पुजारी को वो बचा न सकीं थीं । भय के भवँर ने उनके मुँह पर ताला लगा दिया था । अपनी बेटी को मरा जान भैरव वहाँ आता है परन्तु अपनी बेटी को ज़िंदा देखकर दुर्गा माँ को नमन करता है । 

कुसुम, भैरव और कुसुम की सासु माँ अपनी पोती को गोद में लिये हुए प्रकृति के नियमों के आगे समर्पण करने के निश्चय के साथ घर को चल देते हैं । 

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