हवा को नज़र लगी है
सादर प्रणाम !
(आजकल साँस लेने में भी कठिनाई है। यह किसी रोग की वज़ह से नहीं है, बल्कि हवा के दूषित और संक्रमित होने के कारण है। हवा का ये हाल क्यों है ?, ये हम सब जानते हैं। प्रस्तुत हैं हवा को समर्पित कुछ लाइने:)
लगता है, हवा को किसी की नज़र लगी है,
तभी तो फ़िज़ा में ज़हर घुली हुई है ।
जो देख पता, काला टीका लगाता।
गर रूठी हो, कर जोड़ मनाता।
भूख की आह से लोग ख़ानाबदोश तो होते थे ।
अब हवा की चाह वालों के नये शब्दकोष होंगे।
जब हवा मौत बनकर पीछे पड़ी है।
कहाँ तक भागें ? मुश्किल बड़ी है।
वहाँ तो पूतना बनी थी,
कहाँ तक संजीवनी बनी रहेगी?
ज़माने को नज़रबंद कर तू भी नज़र को तरसे।
अब बसन्त में भी शुष्क पतझड़ की गूँज बरसे।
सौंदर्य तेरा भी मायूस होगा जो तेरी सन्तान तड़पे।
प्रकृति! पत्ती अगर सुलगे तो पेड़ भी ज़रूर झुलसे।
बदले का कालचक्र अन्तहीन होता है।
लहरें लील कर सिंधु भी ग़मगीन होता है।
-नवीन
फोटो साभार :The Hindu (news) |
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