अतिलघु कथा : मंज़िल की जल्दी

एक आदमी गाड़ी चला रहा था ।
बहुत जल्दी में था ।
 जहाँ थोड़ा सम्हल के चलाना था , अनदेखा करता गया ।
ब्रेक कम लगाया और ऐक्सेलरेटर ज़्यादा दबाया । 
कुछ चीज़ें गाड़ी के नीचे भी आ गयी , कोई परवाह न की । 
मंज़िल की चकाचौंध देख उसको बहुत ख़ुशी हुयी । 
इतना तेज़ वहाँ कोई नहीं पहुँच सका था। 
ख़ुद की पीठ ठोकी । 
समय बीतता गया। जब उसने पलट के देखा :
गाड़ी का मॉडल  : स्मार्ट कलर की धूर्त
नम्बर - पहले मैं फिर मेरा
जो ईंधन जला - रिश्ता
जो कुचले गये-जज़्बात
उसने सोचा :
मंज़िल की मदिरा में, क्यूँ ऐसा हुआ सराबोर।
अरघ दिया जज़्बातों का, ख़ुद्दारी भी आया बोर।
वह वापस जाना चाहता था, लेकिन समय का पहिया आगे चला गया था।
(केवल बीमा के भरोसे न रहें ,तेज़ी में दूसरों की भी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें ।)


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