ज़िंदगी की क़िताब (कविता)



मेरी ज़िंदगी की क़िताब मेरे सामने आ गई है।

समय के थपेड़ों से इसके पन्ने ख़ुद-बख़ुद खुल रहे हैं।

क़िताब के कुछ पन्नों पे लिखा हुआ है। शायद इसे ही इतिहास कहते हैं।

इसमें ऐसा बहुत-कुछ है जिससे मैं इत्तिफ़ाक़ रखता हूँ।

इसमें बहुत ऐसे पन्ने हैं जिनका श्वेत रंग मेरे जीवन में रौशनी भरते हैं। इनका ज़िक्र मेरे हृदय को तरलता से भर देता है, जो मेरे चेहरे से छलक जाती है। 

इसमें चंद ऐसे भी कुछ पन्ने हैं, जिनको पढ़ना कठिन है। ये इतने काले हैं कि कोई उजाला बचता ही नहीं, जिससे इनको पढ़ा जा सके। इनपे घनघोर अंधेरा है। बहुत कोशिश करके इनको पढ़ता हूँ। मन करता है एक बार में पलट डालूँ। इन सबको एक बार में ही पार कर जाऊँ। लेकिन उजियारे पन्नों की उम्मीद में इनको पढ़ता जाता हूँ। ये पन्ने बहुत धीमे पढ़े जा पाते हैं। इनका समय गाढ़ा बीता। जी करता है कि इन पन्नों को फाड़ के क़िताब से अलग कर दूँ। मिटा दूँ वो सब-कुछ जो स्याह है, जिसमें आह है, जिसमें कराह है। फिर सोचता हूँ कि इन चंद पन्नों ने ही तो मेरी परिभाषा लिखी है। इन्हीं पन्नों ने तो मुझे मौक़ा दिया बनने का या फिर बिखरने का। कठिन दौर में भी अपनी कहानी को निर्धारित लाइनों के भीतर लिख सका, या फिर मेरी कहानी ने इन रेखाओं का उल्लंघन कर दिया। इन रेखाओं की मर्यादा बनाए रखना ही जीवन की सफलता का मानक है। इस लिहाज़ से ये स्याह पन्ने मेरे लिए बेशक़ीमती हैं। जैसे काला टीका बुरी नज़र से बचाता है, वैसे ही ये काले पन्ने जीवन को बनाते हैं।

इस क़िताब के बहुत पन्ने ख़ाली हैं, इनकी गिनती मेरे हाथ में नहीं है।इसपे क्या लिखा जाए, मेरे हाथ में यह भी नहीं है। लिखे हुए पन्नों ने सिखाया कि मेरे पाँव के लिए हैं दो रास्ते। एक रास्ता है युद्ध का है दूसरा है बुद्ध का है। युद्ध के रास्ते मैं असीम आसमान को नज़रअंदाज़ करके एक छोटी-सी छत की छाँव लूँगा। इस छत में मैं पल-पल संघर्ष करूँगा उन पलों से, जिनपे मेरा कोई बल नहीं चलेगा। यहाँ दिन के सफ़र से शाम को संतोष नहीं होगा और निशा में निराशा ही मिलेगी। नज़र मंज़िल पे रहेगी और सफ़र का आनंद रूठ जाएगा। मंज़िल की उम्र तिनके के बराबर होगी, सफ़र की मैदान के बराबर। बुद्ध के रास्ते असीम आसार हैं। इस रास्ते की कोई मंज़िल नहीं है।यहाँ केवल पड़ाव हैं और हर पड़ाव एक मंज़िल है। इसपे कितना ही चलूँ, कभी थकान नहीं होगी। थकान तो होती है मंज़िल के बोझ से। जब यह बोझ ही नहीं होगा, तो जीवन कितना हल्का होगा! 

इस क़िताब को अभी रख देता हूँ। पन्नों पे और कहानी लिखी जानी है, जिसका लेखक मैं नहीं हूँ। मैं बस पात्र मात्र हूँ। यह जानना काफ़ी संतोषजनक है।

-काशी की क़लम

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