हुआ करता था घर जो, अब मकान हो गया है। (कविता)


महल जैसा तना है, बहुत ग़ुमान हो गया है,

हुआ करता था घर जो, अब मकान हो गया है।


छतें जो छाँव करती थीं, अब धूप बरसाती हैं

सूखके हर रिश्ता जैसे रेगिस्तान हो गया है। 


रेशमी तारों से जुड़ता था जो रिश्ता

अब गाँठों का खदान हो गया है।


जितने ऊँचे मकान हैं उनसे ऊँची दीवारें

इस मकान का हर शख़्स अनजान हो गया है।


मेरे ग़रीब-ख़ाने में क्या है कि महल जल उठा है!

और धुआँ-धुआँ सारा आसमान हो गया है।

-काशी की क़लम 




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