मौत की गली
वो शहर की सबसे ज़िंदा जगह थी। रात ऐसी जगमग रहती कि जैसे सूरज अस्त हुआ ही नहीं। लोगों की ख़ुशियों का पैमाना वहाँ जाके छलकता था। जोश जैसे वहाँ की हवा में घुला हो। माहौल में ऐसी ऊर्जा कि कोई कितना ही मायूस हो, उन गलियों से गुज़ते वक़्त मुस्कान उसे गुदगुदा ही जाए । वाक़ई में वो जगह ख़ुशियो का पता थी।
मगर आज की रात जश्न मनाने के लिए इंसान नहीं आये थे। वहाँ तमाम योनियों की भटकी हुई आत्माएँ आई थीं। जैसे उन आत्माओं ने अपना वास्तविक कपड़ा उतारकर, दूसरी योनि का चोला पहन लिया हो। ज़िंदा लोगों वाली सड़कों पे उस रात कंकाल ही कंकाल चल रहे थे। कुछ चेहरे ख़ून से लथपथ थे। कुछ ज़ोंबी के थे। नरभक्षी भी वहाँ ख़ून के प्यासे बने घूम रहे थे। चुड़ैलें भी अपने कटे-फटे चेहरों को सिलकर जश्न मनाने आई थीं। वो रात हैलोवीन की थी। लाखों युवक-युवतियाँ हैलोवीन का जश्न मनाने उस जगह इकट्ठा हुए थे। कोई कितना ही क़रीबी हो, अपने दोस्त को बिना परिचय पहचान नहीं सकता था। उन परिधानों ने सबकी पहचान मिटाकर उस रात की एक नई प्रेतीय पहचान दे दी हो। सब लोग हैलोवीन के कॉस्ट्यूम में थे। लोग एक-दूसरे के साथ फ़ोटो खींचके तुरन्त सोशल मीडिया पे डाल रहे थे। सोशल मीडिया पे मिले लाइक और कमेंट्स जैसे उनके वहाँ जमा होने को सार्थक कर रहे थे। सोशल मीडिया पे जैसे वो जगह लाइव हो गई हो। इन दानवी लिबासों के भीतर आदमियों की ही आत्माएँ थीं। ये आत्माएँ दूसरे कॉस्ट्यूमों को देखकर भय से चींख उठतीं। एक चींख दूसरे को जन्म देती और फिर चींख-चिल्लाहट उस पार्टी के हिस्से बन गए।सोशल मीडिया पे अपने मित्रों की फोटो देख दूसरे मित्र भी पार्टी की ओर चल दिए। रात ढलती गई और लोग वहाँ हैलोवीन के दानव बनकर जमा होते गए। हर चीज़ की क्षमता तय होती है। जश्न की जगह लोगों की क्षमता को कबकी पार कर चुकी थी। लोग मानव रूप में होते, तो शायद वो और लोगों को जश्न के माहौल में समा सकती थी। लेकिन उस रात लोग मानव नहीं दानव बनकर आए थे। एक दानव हज़ारों मानवों की जगह घेरे चल रहा था। उसके अन्दर एक अनोखी दानवी स्वभाव ने घर कर लिया था। वो केवल वेश ही नहीं, जैसे प्रेतात्मा के वश में भी थे। उनको अपने कंस्ट्यूम के अनुरूप व्यवहार करने का धर्म पालन करना था। सबके अंदर अजीब-सी आक्रामकता समा गई थी।
नाटकीय दानवों का वह सैलाब और दानवी हो गया जब उसे एक सँकरी गली से गुज़रना पड़ा। जैसे किसी घर में पूरे अपार्टमेंट के लोगों को रहना पड़े। जैसे लोकल मेट्रो की भीड़ हो। लोगों का दम घुटने लगा था। लोगों को साँस लेने के लाले पड़ रहे थे। वह गली एक ढलान पे थी। ढलान ऐसी कि यदि उतरते वक़्त आदमी अपना संतुलन न बनाए, तो चलने की बजाए भागने लगे। यहाँ तो दानव पहले से ही असंतुलित थे। अपने आपको संतुलित कौन रख सकता था! लोग चिल्लम-चिल्ली में अपने आगे वाले को धक्का देते गये। धक्का देने के यह सिलसिला डॉमिनो इफ़ेक्ट वाला था। जिसको मिला, वो गिरा। संभलने की कोशिश में अपने आगे वाले को गिराता चला गया। जो गिर गया वो सड़क हो गया। दानवों को उनके ऊपर चढ़के जाने के अलावा कोई और रास्ता न था। पहले अपनी जान बचानी थी। नीचे क्या बिछा है, कौन बिछा है, वो देख नहीं सकते थे। लोग बिछते गये। लोग बुझते गये।
जश्न का सिलसिला जारी था। लेकिन इस बार जश्न मौत कर रही थी। बिछे हुए लोगों के हृदय की चाल बंद हो चली थी। जैसे चलते-फिरते लोगों ने फ़ैसला किया हो कि अब बहुत चल लिये, कफ़न ओढ़ के वहीं सो जाते हैं। रंगीन सड़क को मौत ने ब्लीच करके सफ़ेद चादर से ढक दिया हो। वो शोरगुल, हँसी का माहौल सन्नाटे में गुम हो गया। पलक झपकने से पहले जो ज़िंदगी थी, पलक झपकने के बाद मौत बन गई। जो लोग बिछने से बचे गए थे, वो इस बात की तसल्ली करना चाह रहे थे कि वे पलक के किस पार हैं! ख़ुशियों की राजधानी में मातम करती सड़कों पे लाशें ही लाशें बिछी थीं। एक पल को ये भी लगा कि लाश बनकर बिछ जाना भी हैलोवीन कॉस्ट्यूम का एक हिस्सा हो। था तो वह नाटक ही, लेकिन ज़िंदगी के रंगमंच पे।
समाचार सुनकर सबके घरों में मातम छा गया। सबको यही था कि उनका बच्चा सलामत रहे! यही सलामती की दुआ हाना के घर वाले भी कर रहे थे। उसने बड़ी ज़िद करके वैम्पायर का ड्रेस ख़रीदवाया था।उसके पिता ने बोला भी था कि चुड़ैल जैसा कपड़ा पहनोगी, तो बर्ताव भी चुड़ैलों जैसा ही करने लगोगी। उस रात हाना के घर की प्रार्थना भगवान ने सुन ली। हाना घर आई। उसने जो मौत का ताण्डव देखा था, उसने हाना को ज़िंदा लाश बना दिया था। ज़िंदगी भर वह इस आत्मग्लानि में रहेगी कि कहीं उसके पैरों से तो उसकी दोस्त नहीं कुचली गई!
(सच्ची घटना से प्रेरित)
-काशी की क़लम
Kahan se sochte Hain sale Sahab yah sab humko bhi sikha dijiye
जवाब देंहटाएंHamen bhi sikha dijiye yah guruvani hai
जवाब देंहटाएंबहुत खूबी से आपने एक बड़े हादसे का बयान किया है। मुझे बहुत पसंद आया। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपकी यह कहानी रात में पढ़ने की हिम्मत नहीं हुई इसीलिए दिन में पढ़कर इस पर टिप्पणी लिख रहा हूं। आपने बहुत ही अच्छे तरीके से एक सच्ची घटना को अपनी कलम के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया है।
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