बर्फ ही बर्फ (कविता)
(बर्फ़बारी का आलम)
दिनों दिन बर्फ़ गिरे जा रही है
पारा बेलगाम है
वो खाई खोदता जा रहा है।
बर्फ़ ने सबको उनके घरों में नज़रबन्द कर दिया है
और बाहर लगा दिया है हवा को पहरे पे।
बाहर की सर्दी का हाल ही क्या पूछना!
कुशल है मानव हूँ कि घर गरम है।
मन में बैठी सर्दी से मन अधिक व्याकुल है।
ये आसमान को किस बात का शोक है!
जो उसका दिल जमकर बर्फ़ हो गया है।
उसके आँसू बर्फ़ होकर गिर रहे हैं
सूरज से यह पीड़ा देखी नहीं जा रही है
और उसने अपना चेहरा ढँक लिया है।
गिरते इन आँसुओं का अंजाम अच्छा नहीं है।
इन बर्फ़ीले आँसुओं पे हवा क़हर बरसा रही है।
जिस धरती पे ये आँसू जम जाना चाहते हैं
जिसके साथ मिलकर फिर एक हो जाना चाहते हैं
वो धरती, वो साथी उनको नसीब नहीं हो रहे हैं।
हवा इनको तिल-तिल करके दूर उड़ाए जा रही है
कोई यहाँ, कोई वहाँ, कोई इधर, उधर, हर ओर
मानो हवा ने ठान लिया हो
कि इन ठण्डे आँसुओं को बता दे
कि तुम सब मेरी मर्ज़ी के ग़ुलाम हो!
लगातार बर्फ़बारी ने जो सफ़ेदी पोती है
धरती के मुख पर कि सब श्वेत श्वेत हो गया है
सफ़ेद कभी छिपाना नहीं जानता,
इसपे दाग़ बड़े जल्दी खिल जाते हैं।
सफ़ेदी अधिक दिन तक झेली नहीं जाती,
सफ़ेदी ही क्या,
कोई भी एक रंग निरसता पैदा करता है।
लाल ही लाल
नीला ही नीला
हरा ही हरा
काला ही काला
सब उबाऊ होंगे।
सबको मिलाके जो रंग बनेगा
लाल नीला हरा काला
वो रंग रोचक होगा।
बर्फ़!
उसमें उग आए हैं
आने-जाने वालों के क़दमों के निशान,
बर्फ़ में गाड़ियों के पहियों की लकीरें।
ये सारे निशान कुछ पलों के मेहमान हैं।
बर्फ़ थोड़ी देर में इन खाली निशानों को मिटा देगी,
ऐसे भरेगी कि कोई यहाँ से गुज़ारा ही न हो,
ऐसे कि कुछ हुआ ही न हो।
समतल सपाट सफ़ेद स्फटिक-सी धरती
फिर नए क़दमों के स्वागत करने को तत्पर।
ये निशानों के बनने और मिटने की परम्परा तो चलती रहेगी।
ये सब बता रहे हैं कि आसमान को मातम कितना हूँ हो, पर प्रकृति ठहरने वाली नहीं है।
ख़ैर, ये बर्फ़बारी तो चन्द दिनों की मेहमान है
लेकिन जो आदमियों के दिल बर्फ़ होते जा रहे हैं,
उनको भी कोई तो बसन्त पिघलाएगा!
व्याकुल होना मत,
उस बसन्त की राह जोहना।
पुरवाई बहेगी या चलेगा पछिमा
मगर बसन्त आएगा।
जाड़े से कैसा भय है
बसंत का आना तय है।
-काशी की क़लम
Very nice
जवाब देंहटाएंSundar
जवाब देंहटाएंDHUANDHAR 🙏🙏
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