अमेरिकन दिल (संस्मरण)

सादर प्रणाम!

जोश, जुनून, सृजन की फसल को सिंचित करने वाले अमेरिका के स्कूल। ये ऐसे हैं कि फिर से पढ़ने का मन कर जाए! लेकिन क्या करें, मन का तो काम ही है करना! इस बात से मन मान जाता है कि हम नहीं, तो चलो हमारे उत्तराधिकारी ही सही! परमेश्वर की कृपा से बड़ी बेटी का दाख़िला मिडल स्कूल में हुआ है। कुछ दिनों पहले पी॰टी॰एम॰ (PTM) का निमंत्रण मिला। शिक्षक-अभिभावक गुफ़्तगू! मुझे पाँच शिक्षकों- शिक्षिकाओं से अग्रिम समय लेना था।  काम को बस्ते में सेने की मेरी आदत ने तीन ही शिक्षिकाओं से समय दिलाया। जब भी उस विद्यालय जाने का मौक़ा मिला, एक ही शब्द का अनुनाद वहाँ पाया-ऊर्जा। दिन भर के पाठन के बाद भी शिक्षक गण शाम ८ बजे उसी ऊर्जा के साथ बच्चे की प्रगति की चर्चा कर रहे थे। हर बच्चे के साथ उनका लगाव व्यक्तिगत लगा। प्रत्येक शिक्षक के साथ पाँच-पाँच मिनट का समय था। उन पाँच मिनटों में पचास मिनटों का सार था। 

सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका से मैं बहुत प्रभावित हुआ। उनको बताना बेटी के बारे में था, मगर उन्होंने पहले मेरा हाल पूछ डाला। सवाल किया, “अमेरिका में आप लोग ठीक से adjust कर रहे हैं?” फिर उन्होंने इस सवाल को पूछने का अपना मक़सद भी बताया। हाल ही में उनके बेटे घर छोड़के यूनिवर्सिटी गए हैं, अमेरिका में ही। यह परिवर्तन पचाना उनके लिए कठिन पड़ रहा था। यहाँ हम सब ख़ुद को धरती के एक छोर से उखाड़ के दूसरे छोर पे जमाने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए वो हमारी दशा को अच्छे से आँक पा रही थीं। ख़ैर, उनको इस सवाल का ज़वाब भी पता था। रोज़ बेटी से मिलती थीं। बच्चे का क्लासरूम में बर्ताव उसके घर के माहौल ट्रेलर होता है। मैं बड़ा खुश हुआ। मैंने सुना था कि अमेरिका में पैसा है, प्रोग्रेस है, पॉवर है। मैंने पाया कि अमेरिका के पास भी दिल है!

-काशी की क़लम




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