लघु कथा- "क्या आप मुझे अपने पास रखेंगे?"

राजीव अपने मोबाइल पर आए कॉल के नम्बर को देख के घबरा गया। उसे एक बार भी विश्वास नही हुआ, उसने फिर से ध्यान से देखा। ये नम्बर उसके रूम पार्टनर रहे मोहित का था, जिसकी दो महीने पहले कोरोना के कारण मृत्यु हो गई थी। राजीव को अपने उस जिगरी की मौत का पता हॉस्टल वाले व्हाट्सएप ग्रुप से चला कि दो दिन के अंतर पर मोहित और उसकी पत्नी की कोविड के कारण मृत्यु हो गई, जो कभी इतना पक्का दोस्त था कि हॉस्टल के साथी मियां बीबी कह के मज़े लिया करते थे। बचपन से ही माँ की ममता से वंचित मोहित अपने पापा के गुजरने के बाद ट्यूशन पढ़ा के खुद भी तैयारी कर रहा था। उसे पढ़ाना बहुत पसंद था और इसीलिए उसने बीएड भी कर रखा था।हॉस्टल के अन्तःवासियों के साथ साथ यार दोस्त भी उसे मास्टर ही कहते थे। राजीव खुद भी निम्न वर्ग के परिवार से था, उसके पिता की धार्मिक पुस्तकों की छोटी से दुकान थी। जल्दी ही विशिष्ट बी टी सी में मोहित की नौकरी प्राथमिक विद्यालय में लग गई। नौकरी लगने वाली उस रात दोनों पार्टनर सोये नही। मोहित और राजीव दोनों बहुत खुश थे पर दोनों रोये भी; मोहित इसलिए कि मां और बाप दोनों दुनिया में नही थे जो उसकी इस खुशी में खुश हो सकें, भाइयों और भाभियों ने तो पिता जी के गुजरने के तुरंत बाद ही सारे रिश्ते तोड़ लिए थे, शायद उन्हें डर था कि इसकी पढ़ाई का खर्च देना पड़ेगा और राजीव इसलिए रोया कि अब मोहित साथ नही रहेगा। दोनों की दोस्ती बदस्तूर जारी रही। मोहित ने जब सहकर्मी शिक्षिका साधना से प्रेम विवाह किया तो राजीव अकेला था जो दूल्हा और दुल्हन की दोनों की ओर से था। मोहित और साधना की एक प्यारी बिटिया रानू पैदा हुई। राजीव की लगातार असफलताओं के बाद भी राजीव से मोहित को उम्मीद थी कि वो पी सी एस में जरूर चयनित होगा। जब भी वो इलाहाबाद आता तो राजीव के जेब मे पैसे डाल के चला जाता, मेस का बकाया जमा कर देता, इंटरव्यू के कपड़े भी उसी ने सिलाए। सलेक्शन वाले साल भी मोहित इंटरव्यू से ले के रिजल्ट तक वो राजीव के साथ था ताकि वो राजीव को अकेला न पड़ने दे। राजीव सफल हुआ, उसे एस डी एम का पद मिला। उस रात शायद राजीव से ज्यादा खुश मोहित था। उस रात की पार्टी भी मोहित ने ही ऑर्गनाइज की थी। समय के साथ नौकरी की उहापोह और व्यस्तता ने दोनों के बीच एक अनकही दीवार खड़ी कर दी थी। बातचीत कभी कभी हो पाती पर मुलाकात तो केवल राजीव की शादी पर ही हो पाई। राजीव को अपने पद के स्तर की पत्नी अनुराधा मिली थी जिसे मोहित और उसका परिवार निम्न दर्ज़े का लगा। नौकरी वाली दूरियां अब बिना कुछ कहे या किये खाईं बन गईं। मोहित और साधना की मौत की खबर जब मिली उस समय राजीव और अनुराधा दोनों कोविड पॉजिटिव थे। राजीव चाह के भी मोहित के यहां जा नही पाया। पर आज एकाएक मोहित के नंबर से फोन आने पर वह उम्मीदों के नाव में हिलोरे खाने लगा। एक बार लगा कि काश कि मोहित की खबर झूठी रही हो। राजीव ने अपने मन को काबू कर फोन रिसीव किया। उधर से आवाज़ आयी 'राजू चाचा मै रानू बोल रही हूं।' मोहित की दस साल की बेटी रानू ने बिना राजीव को सुने ही आगे कहा,"चाचा! पापा ने हॉस्पिटल में भर्ती होने से पहले मुझसे कहा था कि राजू चाचा को फोन नही करना, चाचा चाची दोनों की भी तबियत खराब है, वो ज्यादा परेशान हो जाएगा। उसी शाम मम्मी की भी तबियत बिगड़ गई, मम्मी को किसी तरह हॉस्पिटल में जगह मिली।" सिसकियों के साथ वो आगे बोली," .....पापा मम्मी दोनों वापस नही आये चाचा। पड़ोस के अंकल-आंटी ने मुझे अपने साथ रखा हुआ है। गांव से और नाना के यहां से मुझे कोई लेने नही आया। चाचा क्या आप.......।" कुछ देर रुक कर वो आगे बोली,"क्या आप मुझे अपने पास रखेंगे?”
लघु कथा: क्या आप मुझे अपने पास रखेंगे? कथाकार-डॉ. हरेंद्र नारायण सिंह; छायांकन- vectorstock


-डॉ. हरेंद्र नारायण सिंह

टिप्पणियाँ

  1. Heart touching story.. Due to COVID-19 we don't know How many Raanu is waiting for their Chachu..

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  2. भाव विभोर करने वाला लेख। अति सुन्दर।

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